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पाठ 11 : कलहों विणास-कारणं
पाठ-परिचय :
प्राकृत आगम ग्रन्थों में निशीथ नामक एक ग्रन्थ है, जिसमें मुनियों के आचरण-सम्बन्धी नियम वरिणत हैं । इस निशीथ की व्याख्या के रूप में जिनदासगरिणमहत्तर ने लगभग 6-7 वीं शताब्दी में निशीथविशेषरिण लिखी है । इस ग्रन्थ में कई दृष्टान्त और कथाए दी गयी हैं।
प्रस्तुत दृष्टान्त में दो गिरगिटों की लड़ाई का वर्णन है । कथाकार ने यहाँ उदाहरण प्रस्तुत किया है कि यद्यपि गिरगिट बहुत छोटे प्राणी हैं। उनके लड़ने से बड़े पशु एवं जानवरों के आराम में कोई विध्न नहीं पड़ना चाहिए। किन्तु कलह का कोई भरोसा नहीं, कब क्या रूप ले ले । इन दो गिरगिटों की लड़ाई ने सभी वनधर, थलचर एवं जलचर प्राणियों की शान्ति को नष्ट कर दिया था।
अरण्णमझे अगाहजलं सरं जलयोवसहियं वरणसंडमंडियं । तत्थ य बहूरिण जलचर-खहचर-थलचराणि य सत्तारिण आसितागि । तत्थ य एगं महल्लं हत्थि जूहं परिवसति। अण्णता गिम्हकाले तं हथिजूहं पारिणयं पाउं हाउत्तिण्णं मन्झण्हदेसकाले सीयलरुक्खछायासु सुहंसुहेण पामुत्त चिट्ठति ।
तत्थ य अदूरे दो सरडा भंडिउमारद्धा। वणदेवयाए उ ते दळु सम्वेसि सभाए आघोसियं
गागा जलवासिया, सुरणेह तसथावरा ।
सरडा जत्थ भंडंति, प्रभावो परियत्तई ।। 1 ।। देवयाए भरिणयं-'मा एते सरडे भंडते उवेक्खह, वारेह । तेहिं जलचरथलचरेहिं चितियं-'कि अम्हं एते सरडा भंडते काहिंति ?'
तरथ य एगो सरडो भंडतो भग्गो पेल्लितो सो धाडिज्जतो सुहसुत्तस्स
प्राकृत गद्य-सोपान
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