SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाठ 10 : कण्हेण थेरस्स सेवा पाठ-परिचय: प्राकृत के आगम ग्रन्थों में एक आगम ऐसा है, जिसमें संसार-भ्रमण का अन्त करने वाले अहंतों (महापुरुषों) की कथाए हैं। इस ग्रन्थ का नाम अन्तकृद्दशा है । इसकी रचना ईसा की 4-5 वीं शताब्दी के लगभग हो चुकी थी। इस ग्रन्थ में गजसुकुमाल की कथा है, जो श्रीकृष्ण वासुदेव के समय में हुए थे। उसी प्रसंग में श्रीकृष्ण की करुणा और सेवाभाव का एक उदाहरण इस कथा में प्रस्तुत किया गया है। श्रीकृष्ण ने एक बूढ़े व्यक्ति के कार्य में स्वयं मदद की तो उनका अनुगमन करके उनके सभी मित्र भी सेवा में जुट गये। इस गद्यांश में अर्धमागधी प्राकृत का प्रयोग हुआ है । तए णं से कण्हे वासुदेवे कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पल-कमलकोमलुम्मिलियंमि, अह पंडुरे पभाए, रत्तासोगपगास-किसुय-सुय मुह-गुजद्धरागबंधुजीवग--पारावयचलण-नयणपरहुय--सुरत्तलोयणजासुमिणकुसुम-जलियजलण-तवणिज्जकलस-हिंगुलयनियर-रूवाइरे गरेहन्तसस्सिरीए दिवागरे अहक्कमेण उदिए, तस्स दिणकर-परंपरावयारपारद्धम्मि अधयारे, बालातव कुंकुमेणं खइए व्व जीवलोए, लोयणविसप्राणुप्रासविगसंत-विसददंसियम्मि लोए, कमलागरसंडबोहए उठ्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते, हाए, विभूसिए हत्थिखंधवरगए सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तोणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामरेहिं उद्धृवमारणीहिं महयाभड-चडगर-पहकरवंद-परिक्खित्त बारवई नयरिं मझ-मज्भेणं जेणेव अरहा अरिटुनेमी तेणेव पहारेत्थ गमरणाए। तए णं से कण्हे वासुदेवे बारवईए नयरीए मझ-मज्झेणं निगच्छमाणे एक्कं पुरिसं जुण्ण जरा-जज्जरिय-देहं पाउरं झूसियं पिवासियं दुव्बलं किलितं प्राकृत गद्य-सोपान 41 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003807
Book TitlePrakrit Gadya Sopan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1983
Total Pages214
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy