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पाठ 6 : लोहस्स न अन्तो
पाठ-परिचय :
उत्तराध्ययन सुखबोधाटीका में नेमिचन्द्रसूरि ने कई शिक्षाप्रद कथाएं दी हैं। इस कथा में बतलाया गया है कि कपिल अपने नगर से दूर शिक्षा प्राप्त करने गया था, ताकि वह अपनी माँ का दुःख दूर कर सके । किन्तु वह वहाँ शिक्षा की उपेक्षा कर भोजन कराने वाली स्त्री को खुश करने के लिए धन कमाने के लोभ में पड़ गया। दो माशा स्वर्ण की जरूरत होने पर वह लाखों-करोड़ों की इच्छा करने लगा। फिर भी लोभ का कोई अन्त नहीं था। अत: कपिल को अन्तःप्रेरणा से सद्बुद्धि आ गयी और वह लोभ को छोड़कर ज्ञानार्जन में लग गया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं कोसंबी नाम नयरी। जियसत्त राया। कासवो उवज्झायो विज्जाठाणपारगो राइगो बहुमो। वित्ती से उवकप्पिया । तस्स जसा नाम भारिया । तेसिपुत्तो कविलो नाम ।
__ कासवो तम्मि कविले खुड्डलए चेव कालगयो। ताहे तम्मि मए तं पयं राइणा अन्नस्स विप्पस्स दिन्न । सो य आसेरण छत्तेण य धरिज्जमारणेण वच्चइ । तं दट्ट ण जसा परुण्णा । कविलेण पुच्छिया। ताए सिट्ठ जहा'पिया ते एवं विहाए इड्ढीए निग्गच्छियाइनो, जेण सो विज्जासंपन्नो।'
___ सो कविलो भणइ- 'अहं पि अहिज्जामि ।' सा भरणइ- 'इह तुम मच्छरेण न कोइ सिक्खावेइ, वच्च सावत्थीए नयरीए पिउमित्तो इंददत्तो नाम उवज्भारो सो तुमं सिक्खावेही ।' सो गो सावत्थीं, पत्तो य तस्स समीवं, निवडियो चलणेसु । पुच्छियो- 'को सि तुमं?' तेण जहावत्तं कहियं । विणयपुव्वयं च पंजलिउडेण भणियं- 'भयवं! अहं विज्जत्थी तुम्हं तायनिविसेसाणं पायमूलमागो। करेह मे विज्जाए अज्झावरणेण पसायं ।'
उवज्झाएण वि पुत्तयसिणेहमुव्वहंतेण भरिणयं- 'वच्छ! जुत्तो ते
कृत गद्य-सोपान
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