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तब देवता ने उसके सामने निवेदन किया - 'हे पुत्री ! जहाँ-जहाँ तुम जाओगी वहाँ-वहाँ मेरे महात्म्य के प्रभाव से यह बगीचा भी तुम्हारे साथ जायेगा। घर आदि पर जाने पर तुम्हारी इच्छा से अपने को समेट कर हाते की तरह यह तुम्हारे ऊपर ठहर जायेगा । और तुम आपत्तिकाल आने पर काम होने पर मुझे स्मरण करना।' ऐसा कहकर वह नामकुमार चला गया।
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पाठ २५ : वर का निर्णय
हस्तिनापुर नगर में अनेक गुणरूपी रत्नों से युक्त शूर नामक राजपुत्र रहता था। उसकी गंगा नाम की पत्नी थी। उन दोनों के परम सौभाग्यवाले शील आदि गुणों से अलंकृत सुमति नामक पुत्री थी। कर्मों के फल के वश से पिता, माता, भाई एवं मामा के द्वारा वह कन्या अलग-अलग वरों को दे दी गयी (सगाई कर दी गयी)।
एक ही दिन में विवाह करने के लिए आये हुए वे चारों ही वर आपस में झगड़ा करते हैं। तब उनमें भयंकर लड़ाई हो जाने गर बहुत से लोगों के नाश को देखकर वह सुमति कन्या आग में प्रविष्ट हो गयी। अत्यन्त आसक्ति के कारण एक वर भी उसके साथ प्रवेश कर गया। (उनके जल जाने पर) एक वर (दूसरा) (उनकी) हड्डियों को गंगा की धारा में बहाने के लिए ले गया । एक (तीसरा) वर वहीं पर चिता की राख को जलसमूह में डालकर उस कन्या के दुख से मोहरूपी महान् ग्रह से ग्रसित होकर पृथ्वीमण्डल में घूमने लगा । चौथा वर वहीं पर स्थित होकर उस स्थान की रक्षा करता हुआ और प्रतिदिन वहाँ अन्न का एक पिण्ड डालता हुआ समय व्यतीत करने लगा।
___इसके बाद वह तीसरा वर पृथ्वीतल पर घूमता हुआ किमी गांव में रसोईघर में भोजन बनवाकर जीमने के लिए बैठा था । उस घर की मालकिन उसे परोस रही थी। तभी उसका छोटा पुत्र अत्यन्त रोने लगा। तब क्रोध के बढ़ जाने से उस स्त्री ने उस बालक को अग्नि में डाल दिया। (यह देखकर) वह वर भोजन करते हुए उठने लगा। तब वह स्त्री कहती है - 'सन्तान किसो के लिए अप्रिय नहीं होती है । क्योंकि जिनके लिए माता-पिता अनेक देवताओं की पूजा, दान, मंत्र-जाप आदि क्या-क्या नहीं करते हैं । तुम सुख-पूर्वक भोजन करो। मैं बाद में इस बच्चे को जीवित कर लूगी।'
प्राकृत गद्य-सोपान
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