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तभी सारे त्रिभुवन में कुद एवं चन्द्रमा के समान उसका निर्मल यश फैल गया । अहो ! धन्या है, अहो ! कृतार्थ है, अहो चन्दनबाला लक्षणों से युक्त है। उस चन्दनबाला ने अपने जन्म और जीवन का फल प्राप्त कर लिया है।
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पाठ २१ : जैसा गुरु वैसा चेला
एक गांव में बहुत से कोठों से युक्त एक मठ मैं एक शिष्य के साथ बड़ा आचार्य रहता था। एक बार उसने रात्रि में स्वप्न देखा कि- मठ के सभी कोठे (बखरी) लड्डुओं से भरे हुए हैं । जगने पर उसने प्रसन्नतापूर्वक यह बात अपने शिध्य से कही । उसने कहा- 'यदि ऐसा है तो आज हम पूरे गाँव को निमन्त्रण कर देते हैं। गाँव के घरों में हमने बहुत बार खाया है।'
- 'ठीक है' ऐसा स्वीकार करने पर घूरे पर जाकर उस चेले ने मुखिया समेत पूरे गाँव को निमन्त्रण दे दिया। 'तुम्हारे यहाँ भोजन सामग्री कहाँ से आयी ?" ऐसा पूछे जाने पर भी 'धर्म के प्रभाव से सब होगा' ऐसा कहकर शिष्य द्वारा बलपूर्वक उन्हें मना लिया गया। भोजन का मंडप बनवाया गया। आसन-पंक्तियाँ बिछायी गयीं । उचित समय पर गांव के लोग भी आ गये । आसनों पर बैठ जाने पर उन्हें भोजन-पात्र भी दे दिये गये।
___इसी समय में वह परम आचार्य लड्डुओं के लिए भीतर घुसा। किन्तु वहाँ कुछ भी नहीं देखता है । तब 'चित्त न लगाने से मैं लड्डुओं वाले कमरे को भूल गया है । अतः उसे देखने के लिए फिर सो जाता हूँ। तब तक तुम लोगों के शोरगुल को रोकना।' चेला को ऐसा कहकर वह आचार्य सो गया।
इसी बीच में लोगों ने कहा- 'लोग भूखे हैं, शाम हो रही है अतः देर क्यों की जा रही है ?' चेले ने कहा-'शोर मत करो क्योंकि मेरे गुरु नींद ले रहे हैं।'
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प्राकृत गद्य-सोपान
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