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________________ जीवन से क्या लाभ ? वही बेचारी जिन्दा रह जाय।' ऐसा सोचकर उसने सेठ को चन्दनबाला का सब वृत्तान्त बताकर कहा---' वह यहाँ एक कोठरी में है ।' घबराया हुआ सेठ वहाँ गया । किन्तु वहाँ चाबी नहीं थी । तब किसी प्रकार किवाड़ों को तोड़ा गया । चन्दनबाला को उस अवस्था में देखकर आखों से आँसू बहाते हुए सेठ ने कहा - 'हे पुत्रि ! चन्दन की तरह शीतल ! तुम कैसे इस अवस्था को प्राप्त हुई ? अथवा दुर्जन लोगों की दुष्टता की कोई सीमा नहीं है ।' तब उसने भोजन खोजा । किन्तु मूला के द्वारा भविष्य की तरह उसका अभाव था । इधर-उधर खोजते हुए सेठ ने सूपे के कौने में उड़द देखे । उनको उसी रूप में चन्दनबाला को देकर बेड़ी कटवाने के लिए स्वयं वह लोहार के घर चला गया । वह चन्दनबाला भी दरवाजे की देहरी पर आसरा लेकर बैठ गयी। तब अपनी गोद में सूप के कौने में पड़े हुए उड़दों को देखकर खंभे में बत्रे नये हाथी की तरह जैसे विन्ध्यपर्वत को याद किया जाता है वैसे ही वह अपने कुल को यादकर रोने लग गयी । उसके बाद चन्दनबाला ने सोचा- 'तीन दिनों से किसी सुपात्र को बिना दान दिये मैं कैसे आज भोजन करूँ ? अच्छा हो यदि कोई सुपात्र यहाँ आ जाय ।' तब भगवान् महावीर ने जो प्रतिज्ञा ली थी वह अभिग्रह सब तरफ से यहाँ परिपूर्ण हो रहा था । अतः उन्होंने चन्दनबाला के सामने आकर हाथ पसार दिये । उसने सूप के कौने से उड़द उन्हें दिये । उन्होंने पारणा कर लिया। इसी समय आसन चलायमान होने से देवता वहाँ आ गये। पांच दिव्य पदार्थ वहाँ उत्पन्न हुए । प्रतिज्ञा पूरी हुई | समस्त जीवलोक के निष्कारण बन्धु, दुष्ट आठ कर्मों को मूल से उखाड़ने वाले त्रिशलानन्दन ( महावीर ) का आहार हो गया । चन्दनबाला भी तीर्थंकर को आहार देने के धर्म से उपार्जित पुण्य-समूह के द्वारा इस लोक में धन्य हो गयी । प्राकुन गद्य-सोपान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only 173 www.jainelibrary.org
SR No.003807
Book TitlePrakrit Gadya Sopan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1983
Total Pages214
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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