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________________ तुम मेरी पुत्री हो।' ऐसे कोमल वचनों से उसे आश्वासन दिया । और अपहरणकर्ता को यथेष्ट धन देकर वह सेठ वसुमती को अपने घर ले गया। वहाँ उसने मूला सेठानी को बुलाया और उसे कहा -'प्रिये ! यह तुम्हारी पुत्री है । प्रयत्नपूर्वक इसका पालन करना ।' उसने भी उसी प्रकार स्वीकार किया। विनयपूर्वक सेठ और उसके स्वजनों को सम्मान देती हुई वसुमती सुखपूर्वक समय व्यतीत करने लगी। एक बार मधुर वचन, विनय, शील आदि प्रमुख गुणों से प्रसन्न सेठ ने उसका गुणसम्पन्न दूसरा नाम 'चन्दनबाला' रख दिया। इस प्रकार वह वहाँ अपने घर की तरह सुखपूर्वक समय व्यतीत करती । उसके गुणों से आकृष्ट नगर के लोग भी वसुमती की प्रशंसा करते थे-'अहो ! शील, अहो ! सौन्दर्य, अहो ! सदाचरण, अहो ! अमृत की तरह मधुर वचन, अधिक क्या कहें ? विधि ने इसे सर्वगु गसम्पन्न बनाया है । इस प्रकार सबसे प्रशंसा प्राप्त करती हुई, तरुणजनों के मनरूपी हिरण को हरण करने वाले बन्धन की तरह यौवन को प्राप्त करती हुई चन्दनबाला ग्रीष्मकाल को प्राप्त हुई। तब जैसे-जैसे वह यौवन की ओर बढ़ी और घर तथा नगर के लोगों के द्वारा प्रशंसित हुई वैसे-वैसे ईर्ष्या से युक्त सब अनर्थों की जड़ बह मूला सेठानी दुखी होने लगी। अपने मन में वह सोचती है--'अहो ! यह मेरे दुर्भाग्य की सूचक, विषकदली की तरह बढ़ती हुई मुझे फंसाने वाली, सभी अनर्थों की जड़, किंपाकफल को खाने के तरह कटु अन्त वाली, छोटे उपेक्षित रोग की तरह दुःख देने वाली होगी।' इस प्रकार के सैकड़ों कु-विकल्पों से युक्त मूला का समय व्यतीत होता था । एक बार स्नान के समय में अकेला ही सेठ अपने घर पर आया । घर पर कोई नौकर-चाकर नहीं था। मूला सेठानी भी भवन के ऊपर बालकनी पर थी । तब अत्यन्त विनय से घड़ा लेकर चन्दनवाला निकली । आदर के लिए उसने सेठ को आसन दिया। चरण धोने के लिए वह उपस्थित हुई । उस प्रकार से पैर धोती हई उस चन्दना के सुन्दर लम्बे, काले, घुघराले एवं खूब चिकने सिर के बाल जमीन से कुछ ही ऊपर गिरने लगे तब 'कहीं कीचड़ में न गिर जाय' ऐसा सोचकर हाथ से सेठ ने उन बालों को पकड़कर उसकी पीठ पर रख दिये और स्नेह से उन्हें बांध दिया। प्राकृत गद्य-सोपान 11 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003807
Book TitlePrakrit Gadya Sopan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1983
Total Pages214
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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