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(घ) परिशिष्ट
गद्य पाठों का अनुवाद
पाठ ५ : विद्यारहित नष्ट होता है
दुर्भाग्य - प्रमुख एक ग्रामीण अत्यन्त गरीबी से दुखी था। खेती का कार्य
होकर वह घर से निकला
करते हुए भी उसे कुछ नहीं मिलता था । तब उदासीन और पृथ्वी पर घूमने लगा। धनोपार्जन के उसने कई उपाय किये, किन्तु कुछ भी पूरा नहीं हुआ । तब निरर्थक भ्रमण से दुखी वह फिर से घर वापिस लौट आया ।
एक बार रात्रि में वह एक गांव के मंदिर में सोया हुआ था। तभी मंदिर से हाथ में एक विचित्र घड़ा लिए हुए एक आदमी निकला । वह एक स्थान पर खड़ा होकर उस विचित्र कड़े को पूजकर" कहता है- 'शीघ्र हो मेरे लिए अत्यन्त, रमणीय महल सजा दो ।' घड़े ने तुरंत ही वह कर दिया। इसी प्रकार शयन, आसन, धन, धान्य, परिजन, भोग की सामग्री तैयार कर लो। इस प्रकार वह जो जो कहता घड़ा उस उस को पूरा कर देता । जब तक उस विचित्र - षड्ढे की : प्रभा शान्त हो गयी ।
. उस ग्रामीण के द्वारा वह घड़ा देखा गया । उसके बाद वह सोचता है'मुझे अधिक घूमने से क्या लाभ ? इसकी ही सेवा करता हूँ।' उसके समीप जाकर उसने विनयपूर्वक उसकी आराधना की। वह सिद्धपुरुष पूछता है- ' ( तुम्हारे लिए) क्या करू ?' ग्रामीण ने कहा- 'मैं मन्दभानो हूँ ।' सिद्धपुरुष ने सोचा- 'अहो ! यह बेचारा अत्यन्त गरीबी के दुख से पीड़ित है । महापुरुष दुखियों के प्रति वत्सल होते हैं । और भी -
प्राकृत गद्य-सोपान
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