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४. प्राकृत शिलालेखी साहित्य :
प्राकृत गद्य के प्राचीन नमूने शिलालेखों में देखने को मिलते हैं। शिलालेखी प्राकृत के प्राचीनतम रूप अशोक के शिलालेखों में प्राप्त होते हैं। ये शिलालेख ई. पू. ३०० के लगभग देश के विभिन्न भागों में अशोक ने खुदवाये थे । अशोक के शिलालेख प्राकृत भाषा की दृष्टि से तो महत्त्वपूर्ण है ही, साथ ही वे तत्कालीन संस्कृति के जीते-जागते प्रमाण हैं। अशोक ने अपने शिलालेखों में प्राकृत के छोटे-छोटे वाक्यों में कई जीवनमूल्य जनता तक पहुंचाए हैं। वह कहता हैप्राणानां साधु अनारम्भो, अपव्ययता अपभाण्डता साधु -(तृतीय शिलालेख) (प्राणियों के लिए की गयी अहिंसा अच्छी है, थोड़ा खर्च और थोड़ा संग्रह अच्छा है।)
ईसा की लगभग चौथी शताब्दी तक प्राकृत में शिलालेख लिखे जाते रहे हैं, जिनकी संख्या लगभग दो हजार है । खारवेल का हाथीगुफा शिलालेख, उदयगिरि एवं खण्डगिरि के शिलालेख तथा आन्ध्र राजाओं के प्राकृत शिलालेख भाषा एवं इतिहास की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं । प्राकृत गद्य का सबसे छोटा और महत्त्वपूर्ण नमना नमो प्ररहंतान नमो सवसिषानं खारवेल के शिलालेखों में मिलता है । अतः भारतीय गद्य साहित्य के विकास के लिए भी प्राकृत के इन शिलालेखों का अध्ययन आवश्यक है।
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प्राकृत गद्य-सोपान
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