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________________ 5. पभायवेला [द्वितीया विभक्ति ] इमं भायं प्रति । बालग्रा जग्गन्ति । ते जरणत्रं नमन्ति । बालाओ जरिंग नमन्ति । सोहगो रिणयं करं पायं य धोवइ । सो पहाणं करइ । तया ईसरं नमइ । कमला उववनं पासइ । तत्थ पक्खिरणो गीयं गान्ति | पुकारिण वियसन्ति । भमरा गुंजन्ति । बालग्रा कंदुग्रं खेलन्ति । छत्ता पोत्थचारिण पढन्ति । कवी कव्वं लिहइ । गुरू सत्थं पढइ । किसारणो खेत्तं गच्छइ । सेवप्रो कज्जं करइ । बालग्रा विज्जालयं गच्छन्ति । गुरू विज्जलयं गच्छइ । तत्थ सो बालमा पुच्छर । विरणीया छत्ता तत्थ पाइपढन्ति । ते गाहाम्रो सुरणन्ति, कलाओ सिक्खन्ति, आयरियं नमन्ति । भायं सुदेरं हवइ । मात्रा बालं दुद्ध देइ । धूम्रा मा नमइ । इत्थी मालं धारइ । सा जुवई पासइ । जुवई नई गच्छइ । तत्थ सा बहुं पुच्छइ । बहू घे दुइ । सा सासु दुद्ध देइ । पुरिसो गयरं गच्छइ । तत्थ दुद्ध विक्कीers, फलारिण कीरणइ तथा घरं आगच्छइ । अभ्यास (क) द्वितीया विभक्ति के शब्द छांटकर उनका अर्थ लिखो : पुल्लिंग नपुं. लिंग स्त्रीलिंग *********** 6 ************ Jain Educationa International ***************** ************ ........ ........................................................ को धारण करती है । बहू साड़ी को चाहती है। फलों को चाहते हैं | छात्र शास्त्र को पढ़ते हैं । वे ............................................. ***.**** *** ************.** (ख) प्राकृत में अनुवाद करो : पिता बालक को पालता है । राजा कवि को जानता है । हम साधु को नमन करते हैं । विद्वानों को कौन नहीं जानता है ? तुम जीव को न मारो | स्त्री माला आदमी गायों को देखता है । बालक वस्तुओं को नहीं चाहते हैं । ****** 0. For Personal and Private Use Only **** *********** .......**** प्राकृत गद्य-सोपान www.jainelibrary.org
SR No.003807
Book TitlePrakrit Gadya Sopan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1983
Total Pages214
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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