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पाठ-परिचय :
प्राकृत भाषा का प्रयोग नाटकों के पात्र भी करते रहे हैं। लगभग गुप्तयुग के पूर्व नाटककार शूद्रक द्वारा लिखे गये प्रहसन (नाटक) मृच्छकटिक में विभिन्न प्राकृत भाषाओं का प्रयोग हुआ है । यह प्रहसन भारतीय जनता का प्रतिनिधि नाटक है | अन्यायी राजा के शासन के विरुद्ध सामान्य जनता ने जो लड़ाई लड़ी है, उसकी झांकी इस नाटक में है ।
प्रस्तुत कथोपकथन में राजा के विलासी साले और उसके गाड़ीवान् के बीच नगरबधू वसन्तसेना की हत्या करने के सम्बन्ध में जो बातचीत हुई है, वह गाड़ीवान् के दृढ़ चरित्र को तथा अच्छे-बुरे कर्मों के फल को प्रकट करती है ।
इस कथोपकथन में मागधी प्राकृत का प्रयोग हुआ है ।
समारो
चैडो
सगारो
खेडो
समारो
चेडो
सगारो
खेडो
सगारो
चेडो
पाठ 29 : चेडरस धम्मबुद्धी
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अधम्मभीलू एशे बुड्ढकोले । भोदु, थावलनं चेडं अणुरोमि । पुत्तका ! थावलका ! चेडा ! शोवणकडाई दशं ।
श्रहं पिपलिशं ।
शोवण दे पीढके कालइश्शं ।
अहं उवविशशं ।
शां दे उच्छि दशं ।
अहं पि खाइश्शं ।
शव्वचेडाणं महत्तलकं कलशं । भट्टके ! हुविश्शं ।
ता मोहि मम वश्रणं ।
भट्टके ! शब्वं कलेमि, वज्जि कज्जं ।
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प्राकृत गद्य-सोपा
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