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पाठ 26 : सेठ्ठयमा पुत्तलिगा
पाठ-परिचय :
मुनिश्री विजयकस्तूरसूरि ने प्राकृत भाषा में वर्तमान युग में कई ग्रन्थ लिखे हैं। उनके द्वारा रचित पाइअविनाणकहा नामक पुस्तक में कुल 55 कथाए हैं। सरल गद्य में लिखी हुई ये कथाएं विभिन्न विषयों से सम्बन्धित हैं। ..
प्रस्तुत कथा लोकप्रचलित कथा है । भोज राजा की सभा में एक कलाकार तीन पुतलियां लाता है। वे रूप, रंग, वजन, धातु आदि में बिल्कुल समान हैं। उन पुतलियों में श्रेष्ठतम पुतली कौन-सी है, इसका निर्णय कालिदास नामक विद्वान् करता है । पुतलियों के माध्यम से हितकारी वचन को सुनकर हृदय में धारण करने वाले व्यक्ति को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध किया गया है ।
भोयनरिंदसहाए एगया को वि वेएसियो समागमो । तया तीए सहाए कालीदासाइणो अरणेगे विउसा संति । सो वेएसियो नरिंदं पणमित्र कहेइ'हे नरिंद ! अणेगविउसवरालंकिय तुच सहं नच्चा पुत्तलिगात्तिगमुल्लंकरण? तुम्ह समीवे हं प्रागो म्हि ।'
एवं कहिऊरण सो समुच्च-वण्ण-रूवं पुत्तलिगातयं रणो करे अप्पिऊरण कहेइ- "जइ सिरिमंतारणं विउसवरा एमआसि उइनं मुल्लं करिस्संति, तया अज्ज जाव अन्ननरवरसहासु जएण मए लद्धा जे विजयंकंकिग्रा लक्खचंदगा ते दायव्वा, अन्नह अहं विजयक चन्हिप्रसुवण्णचंदगमेगं तुम्हारी गिहिस्सं" । रणा तानो पुत्तलीग्रो मुल्लक रगत्थं विउसारणमप्पियानो । को वि विउसो कहेइ- "पुत्तलिगागयसुवरणस्स परिक्खं णिहसेण हे मरिणगारा ! तुम्हे कुरणेह, तुलाए वि पारोविऊरण मुल्लं अकेह" । तया सो वइएसिप्रो ईसि हसिऊरण कहेइ- एरिसप्पयारेण मुल निरूवगा जयंमि बहवो संति, अस्स सच्चं मुल्लं जं सिया, तं गाउ भोयनरिंदसभाए समागमो म्हि'
प्राकृत गद्य-सोपान
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