SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तमो तेण भरिणयं- 'जेरण जीवाविया सो जम्म-हेउत्तणेण पिया जायो । जो सह-जीवियो सो एग-जम्म-ठाणेण भाया । जो अत्थीणि गंगामज्झम्मि खिविउ गमो सो पच्छा-पुण्ण-करणेण पुत्तो जायो । जेण पुण तं ठाणं रक्खियं सो भत्ता।' एवं मंतिणा विवाए भग्गे चउत्थेरण वरेण रूवचंदाहिहाणेण सा परिणीया। कमेण सो स-नयरमागयो । सो पच्छा तीए पभावेण राया जामो तम्मि चेव नयरे । जो कस्थ वि वर-पुण्णेणं कत्थ वि महिला-सुपुण्ण-जोएण । दुण्ह वि पुण्णण पुणो कत्थ वि संपज्जए रिद्धी ।। 1 ॥ अभ्यास 1. शब्दार्थ : माउल = मामा रंधरणघर = रसोई कुप्पियं = कुपिया भंज = निपटाना भत्ता = पति पुढो = अलग अपच्च - संतान कडवेसं= बनावटी मन = मानना च उत्य = चौथा निविड = अत्यन्त जेसि कए = जिनके लिए लह = प्राप्त करना हेउत्तण = कारण जानो = हो गया * रयणसेहरीनिक कहा (सं० - सेउ हरगोविंददास), वाराणसी। प्राकृत गद्य-सोपान 99 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003807
Book TitlePrakrit Gadya Sopan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1983
Total Pages214
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy