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________________ नासावंसपुरो सुप्रस्स श्रपडू चंचूपुडो निज्जराज sa farar श्रच्छरासु वि धुगं जायंति ढिल्लायरा ॥ 2 ॥ तो कमेण तीसे टूवरिसदेसियाए दिव्ववसा रोगायंकाभिभूया माया कालधम्ममुत्रगया । तत्तो सा सयलमवि घरवावारं करेइ । उट्टिऊण पायसमए विहियगोदोहा कयघरसोहा गोचारणत्थं बाहिं गंतुरण मज्झण्हे उण गोदोहाइ निम्मिय जरणयस्स देवपूयाभोयणाई संपाडिऊरण सयं च भुत्तण पुरणरवि गोणीय चारिऊरण सञ्झाए घरमागंतूरण कयपाओसियकिच्चा खरणमित्तं निद्दासुहं सा अरगुहवइ । एवं पइदिणं कुग्णमारणी घरकम्मेहिं कयत्थिया समाणी जरणयमन्नया भरणइ - ताय ! अहं घरकम्मुरगा अच्चतं दूमिया तापसिय घर संगहं कुरणह ।' इय तीइ त्रयणं सोहरणं मन्नमारणेण तेण एगा माहणी विसद्दमसारणी गहिरणी कया । सा विसायसीला आलसुया कुडिला तहेव घरवावारं तीए निवेसिय सयं महारणविलेवरणभूमरणभोयगाइभोगेसु वावडा तरणमवि मोडिऊण न दुहा करेइ । तम्रो सा विज्जुपहा विज्जुव्व पञ्जलती चितेइ'अहो ! मए जं सुहनिमित्त जगाओ कारियं तं निरउव्व दुहहेउयं जायं । तान छुट्टिज्जई प्रवेइयस्स दुट्ठ कम्मुरणो, अवरो उरण निमित्तमित्तमेव होई ।' जनो - - सव्वो पुव्वकारणं, कम्मारणं पावए फलविवागं । वराहेसु गुणेसु य, निमित्तमित्तं परो होइ ॥ 3 ॥ एवं सामरणदुम्मणा गोसे गावीश्रो चारिऊरण मज्झरहे श्ररस - विरसं सीयलं लुक्खं मक्खियासयसंकुलं भुत्तद्धरियं भोयां भुजइ एवं दुक्खमरणुहवंतीए बारसवरिसा वइक्कंता । अन्नमि दिगो महे सुरहीसु चरंतीसु गिम्हे उन्हकर-तावियाए रुक्खाभावाम्रो पात्रो च्छायाबज्जिए सतिणप्पएसे सुवंतीए तीए समीवे एगो भुयंगो आगो प्राकृत गद्य-सोपान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only 93 www.jainelibrary.org
SR No.003807
Book TitlePrakrit Gadya Sopan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1983
Total Pages214
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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