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पाठ 24 : विज्जुपहाए साहस-करुणा
पाठ-परिचय :
संघतिलक आचार्य ने लगभग 12 वीं शताब्दी में हरिभद्रसूरि द्वारा रचित सम्यक्त्वसप्तति नामक ग्रन्थ की वृत्ति लिखी है । उसमें उन्होंने पाराममोहाकहा प्राकृत मद्य में प्रस्तुत की है । यह आरामशोभाकथा एक लौकिक कथा है। इसमें विद्य तप्रभा एवं उसकी सौतेली मां के व्यवहार का सूक्ष्म वर्णन है ।
प्रस्तुत गद्यांश में विद्युतप्रभा के बचपन की एक घटना का वर्णन है, जिसमें वह निडर होकर एक सर्प की रक्षा करती है । सर्प देवता के रूप में प्रकट होकर उसे वरदान देता है कि उसके सिर पर छाया के लिए हमेशा एक कुज बना रहेगा।
इहेव जम्बूरुक्खालंकियदीवमज्झट्ठिए अक्खंडछक्खंडमंडिए बहुविहसुहनित्रहनिवासे भारहे वासे असेसलच्छिसांनिवेसो अत्थि कुसट्टदेसो । तत्थ पमुइयपककीलियलोयमणोहरो उग्गविग्गहुव्व गोरीसुदरो सयलधन्नजाईअभिरामो अत्थि बलासपो नाम गामो । जत्थ य चाउद्दिसि जोयरणपमाणे भूमिभागे न कयावि रुक्खाइ उग्गइ ।
इनो य तत्थ चउव्वेयपारगो छक्कम्मसाहगो अग्गिसम्मो नाम माहणो परिवसइ । तस्स सीलाइगुणपत्तरेहा अग्गिसिहा नाम. भारिया। ताणं च परमसुहेगा भोगे भुजंताणं कमेण जाया एगा दारिया। तीसे 'विज्जुप्पह' त्ति नाम कयं अम्मापियरेहिं :
"जीसे लोलविलोयणाण पुरो नीलुप्पलो किंकरो। पुग्नो रत्तिवई मुहस्स वहई निम्मल्ललील सया' ।। 1 ।।
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प्राकृत गद्य-सोपार
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