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________________ ........ .... .... ............ मुणे भू०पू० माग क्रियारूप मूलक्रिया काल पुरुष वचन विन्नवइ भुजसु कुणेइ . विद्दवइ विद्दव कृदन्त अर्थ पहिचान मूलक्रिया प्रत्यय पयंपए कहा भू कृ० . अनियमित जानकर विसज्जिओ भेजा भ०० विसज्ज इ+अ पत्तो पहचा भू०० अनियमित गज्जिओ गरजा तरमाणो तैरता हुआ व०कृ० तर ३. वस्तुनिष्ठ प्रश्न : सही उत्तर का क्रमांक कोष्ठक में लिखिए : १. जो पिता द्वारा कमायी हुई लक्ष्मी का भोग करता है वह - (क) बुद्धिमान है (ख) श्रेष्ठ पुत्र है (ग) अधम चरित्र वाला है (घ) आलसी है। [ ] २. माता-पिता ने कहा कि समुद्र-मार्ग(क) सरल है (ख) किले की तरह कठिन है (ग) सस्ता है (घ) धन देने वाला है [] ४. लघुत्तरात्मक प्रश्न : प्रश्नों के उत्तर एक-एक वाक्य में लिखिए : १. समुद्रदत्त धन कमाने के लिए क्यों जाना चाहता था ? २. लौटते समय समुद्रदत्त को किस कठिनाई का सामना करना पड़ा? ३. स्वर्ण की तरह खरा व्यक्ति कौन होता है ? ३. निबन्धात्मक प्रश्न एवं विशदीकरण : (क) समुद्रदत्त के विचारों को अपने शब्दों में लिखिए। (ख) गाथा नं० २, ७ एवं १६ का अर्थ समझाकर लिखिए। कृत काव्य-मंजरी ७५ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003806
Book TitlePrakrit Kavya Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages204
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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