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________________ प्रम्यास १ शब्दार्थ : वहरण = जहाज खवण = दिन गंथ = ग्रन्थ पोन = जहाज प्रहयं = मैं पएस = प्रदेश रोग = अनेक सुर = देवता निम = अपने बरिणो = व्यापारी मयंक = चन्द्रमा रयणायर= समुद्र २. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए : (क) शब्दरूप मूल शब्द विभक्ति गुरूग षष्ठी रयणेहि ठाणेस ठाण = स्थान जलहि = समुद्र पवर = श्रेष्ठ ताव = तभी करतल = हथेली पमाय = असावधानी वचन लिग ब०व० पु० ........ केण ........ संधिकार्य अनुस्वार को म एक अ का लोप देवि ........... धरणारिण संधिवाक्य विच्छेद किमवरेहि किं +अवरेहि चितिअत्थकरो चितिअ+अत्थकरो कम्ममेव ... .... ........ कम्माणुसारेण ........ ........ जेणप्पन्ति जेण +अप्पन्ति रयणमिदु समासपद विग्रह कलाकुसलवरिणओ कलासु+कुसलवरिणओ रयणपरिक्खागंथं रयणस्स+परिक्खागंथं पुवदिसा पुव्वं +दिसा . . . . . . . . . . . . . . . . .. (ग) समास नाम सप्तमी तत्पुरुष षष्ठी तत्पुरुष बहुब्रीही प्राकृत काव्य-मंजरी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003806
Book TitlePrakrit Kavya Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages204
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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