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अभ्यास
१. शब्दार्थ :
छार = राख सय = सौ पज्जत्तं = पर्याप्त रोस = क्रोध सेल = पर्वत पलम = प्रलय पडिवन्ना = प्रतिज्ञा कत्तो = कहाँ नए = संसार में समोरणय = नीचा निरय = लीन परंमुह = विमुख
दोहि = दो पाहारण = पत्थर मज्जाया= मर्यादा रइ = सूर्य तुंग = ऊँचा फुडं = स्पष्ट
लिग
ए.व. ए०व०
पु०
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२. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए : शब्दरूप मूल शब्द
विभक्ति विहिरणा विहि तृतीया तारण गुणेहि काले महातरूरणं सिहराई संधिवाक्य
विच्छेद पाहाण रेहव्व पाहाण रेहा+व्व तत्थेव
तत्थ
+एव सच्चुच्चरणा सच्च +उच्चरणा (ग) समासपव सुद्धसहावो
सुद्धो +सहावो सुयणसहावो सुयणस्स +सहावो फलरहिया
....... .... .... ... पंकयवणाई
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संधिकार्य दीर्घलोप अ+एए भ+उ-उ
विग्रह
समासनाम बहुव्रीहि ष० तत्पुरुष
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प्राकृत काव्य-मंजरी
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