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________________ ते इदि भमन्ति अहं ण भोयर पढामि गुणसम्पण्णो रिवो सासइ सो देवमंदिरे नमइ रत्तपी वत्थं प्रत्थ रात्थि कस्स घरे चंदमुही कन्ना अत्थि महापुरसो तिलोयं जाणइ साहू नवतत्तं जारगइ जीवो पुष्पावारिण अहवइ (ख) समास - प्रयोग सो सुह- दुक्खाणि जाणइ पीनंबरो तत्थ गच्चइ चोरो निल्लज्जो प्रत्थि जहासत्ति धम्मं कुरणह सो सिप्पीपुत्त प्रत्थि तेसु वित्तविज्जाबलागि सन्ति समासपद १. पइदिरण २. देवमन्दिरे ३. रत्तंपीअं ४. तिलोयं कृत काव्य-मंजरी - Jain Educationa International = = = - वे प्रतिदिन घूमते हैं । मैं भोजन के बाद पड़ता हूँ । गुणसम्पन्न राजा शासन करता है । वह देवमन्दिर में नमन करता है । लाल और पीला वस्त्र यहाँ नहीं है । किसके घर में चन्दमा के समान मुख वाली कन्या है ? महापुरुष तीनों लोकों को जानता है । साधु नौ तत्त्वों को जानता है । जीव पुण्य और पापों का अनुभव करता है । अभ्यास (क) पाठ में से समासपद छांटकर निम्न प्रकार लिखो : विग्रह पइ + दिगं देवस्स + मन्दिरे वह सुख और दुखों को जानता है । कृष्ण वहाँ नाचता है । चोर निर्लज्ज है । यथाशक्ति धर्म करो । वह शिल्पी का पुत्र है । उनमें धन, विद्या और बल है । रतं + पीअं ति + लोयं ५. सुहदुक्खं ६. पीअंबरो बहुबीहि शिक्षक से इन समासों को समझकर उनके अन्य उदाहरण लिखिए । सुहं +दुक्खं पीअं + अंबरो समासनाम अव्ययीभाव षष्ठी तत्पुरुष कर्मधारय For Personal and Private Use Only द्विगु द्वन्द ४३ www.jainelibrary.org
SR No.003806
Book TitlePrakrit Kavya Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages204
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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