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________________ ४. पभायवेला [द्वितीया विभक्ति ] इमं पभायं प्रत्थि । बालग्रा जग्गन्ति । ते जरणयं नमन्ति । बालाओ जरिंग नमन्ति । सोहरणो रिणयं करं पायं य धोवइ । सो रहाणं करइ । तया ईसरं नमइ । कमला उववनं पासइ । तत्थ पक्खिणो गीयं गान्ति । पुप्फारण वियसन्ति । भमरा गुंजन्ति । बालग्रा कंदु खेलन्ति । छत्ता पोथरि पढन्ति । कवी कव्वं लिहइ । गुरू सत्थं पढइ । किसाणो खेत्तं गच्छइ । सेवप्रो कज्जं करइ । बालश्रा विज्जालयं गच्छन्ति । गुरू विज्जालयं गच्छइ । तत्थ सो बाला पुच्छइ । विणीप्रा छत्ता तत्थ पाइपढन्ति । ते गाहाम्रो सुगन्ति । कला सिक्खन्ति । आयरियं नमन्ति । भायं सुदेरं हवइ । मात्रा बालं दुद्ध देइ । धूम्रा मात्रं नमइ । इत्थी माल धारइ । सा जुवई पासइ । जुवई नई गच्छइ । तत्थ सा बहु पुच्छइ । बहू ग दुइ । सा सासु दुद्ध देइ । पुरिसो गयरं गच्छइ । तत्थ दुद्ध faratus, फलारिण कीरणइ तया घरं आगच्छइ । अभ्यास (क) द्वितीया विभक्ति के शब्द छांटकर उनका अर्थ लिखो : पुल्लिंग नपुं. लिंग स्त्रीलिंग ********* *******........ Jain Educationa International प्राकृत काव्य - मंजरी ******** ******** प्राकृत में अनुवाद करो :पिता बालक को पालता है। राजा कवि को जानता है। हम साधु को नमन करते हैं । विद्वानों को कौन नहीं जानता है ? तुम जीव को न मारो । स्त्री माला को धारण करती है । बहू साड़ी को चाहती है। आदमी गायों को देखता है । बालक फलों को चाहते हैं । छात्र शास्त्रों को पढ़ते हैं । वे वस्तुओं को नहीं चाहते हैं । .......... For Personal and Private Use Only ******........ २६ www.jainelibrary.org
SR No.003806
Book TitlePrakrit Kavya Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages204
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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