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प्रकाशकीय
प्राकृत भाषा एवं साहित्य के महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का प्रकाशन एवं प्राकृत भाषा का प्रचार तथा प्रसार करना प्राकृत भारती संस्थान के प्रमुख कार्य हैं। इसी दिशा में संस्थान से डॉ. प्रेम सुमन जैन द्वारा लिखित 'प्राकृत स्वयं-शिक्षक खण्ड १'नामक पुस्तक 1979 में प्रकाशित की गयी थी। 1982 में इस पुस्तक का पुनर्मुद्रित संस्करण भी निकल चुका है । यह पुस्तक प्राकृत के जिज्ञासु पाठकों और विश्वविद्यालयों में समादृत हुई है। संस्थान का उद्देश्य है कि प्राकृत का शिक्षण स्कूली शिक्षा से भी प्रारम्भ हो। संयोग से माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, अजमेर ने प्राकृत भाषा को वैकल्पिक विषय के रूप में अपने सैकण्डरी पाठ्यक्रम में स्वीकृत किया है। इस पाठ्यक्रम के अनुसार विद्यार्थियों को प्राकृत की पुस्तके उपलब्ध हो सकें इसके लिए इस संस्थान ने डॉ. प्रेम सुमन जैन से 'प्राकृत काव्य-मंजरी' एव 'प्राकृत गद्य-सोपान' ये दो पुस्तकें तैयार कर देने का आग्रह किया था। हमें प्रसन्नता है कि डॉ. जन की प्राकृत काव्य-मंजरी हम पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं।
प्राकृत काव्य-मंजरी अजमेर बोर्ड के कक्षा 9 एवं 10 के प्राकृत-पाठ्यक्रम के अनुसार तो है ही, साथ ही यह प्राकृत का शिक्षण करने-कराने वाले किसी भी सस्थान अथवा परीक्षा बोर्ड के लिए भी उपयोगी पुस्तक सिद्ध होगी। एक ओर यह पुस्तक प्राकृत भाषा एवं काव्य साहित्य का ज्ञान कराती है तो दूसरी ओर इसके विषय विद्यार्थियों में नैतिक आचरण एवं अनुशासित जीवन की प्रेरणा भी प्रदान करते हैं । अत यह पुस्तक प्रत्येक प्राकृत-प्रेमी के लिए ग्राह्य और उपयोगी होगी, ऐसा हमारा विश्वास है । प्राकृत के प्रचार-प्रसार की दिशा में इस पुस्तक के लेखक व सम्पादक डॉ. प्रेम सुमन जैन जो प्रयत्न कर रहे हैं. उसके लिए उन्हें बधाई है। प्रस्तुत पुस्तक के मुद्रण में भी लेखक ने जो श्रम किया है, उसके लिए संस्थान उनका आभारी है ।
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