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नियम : क्रियारूप क्रियारूप: नियम ११ : प्रत्येक काल की क्रियाओं के अलग-अलग प्रत्यय होते हैं, जो मूल
क्रिया में जुड़कर उस काल का बोध कराते हैं। प्रत्ययों के अतिरिक्त
कुछ मूल क्रियाओं के स्वरों में भी परिवर्तन हो जाता है । वर्तमान काल :
प्र० पु० मि=पढ+मि ए.व.) मो = पढ+मो (ब.व.) म० पु० सिपढ+ सि " इत्था =पढ + इत्था "
अ.प. -पढ+इ " ति -पढन्ति " नियम १२ : प्रथम पुरुष के प्रत्यय मि, मो अकरान्त क्रिया में जुड़ने के पूर्व क्रिया का प्रदीर्घ प्रा हो जाता है। जैसे : -
पढ+मि=पढामि पढ+मो-पढामो भूतकाळ : नियम १३ : अकारान्त क्रियाओं के सभी रूपों में क्रिया में ईश्न प्रत्यय जुड़ता है । जैसे:
पढ+ ईअ=पढीन चल+ ईअ%= चलीमा नियम १४ : आकारान्त आदि क्रियाओं में भूतकाल में ही प्रत्यय जुड़ता है। जैसे :--
गा+ही गाही, रोही, होही आदि । भविष्य काळ :
प्र०पु० हिमि=पढ+ हिमि (ए.व.) हामो=पढ+ हामो (ब.व.) . म०पु० हिसि-पढ+ हिसि " हित्था=पढ+हित्था "
अ.पु० हिइ =पढ+ हिइ " हिन्ति=पढ+ हिन्ति " नियम १५ : भविष्यकाल के प्रत्यय जुड़ने के पूर्व क्रिया के अ को इ हो जाता है।
जैसे :- पढिहिमि, पढिहिसि आदि । इच्छा /आज्ञा:
प्र. पु० मु =पढ+ मु (ए.व.) मो=पढ+ मो (ब.व.) म० पु० हिपढ+ हि " ह =पढ+ह "
अ० पु. उ =पढ+उ " न्तु=पढ+न्तु " नियम १६ : आकारान्त आदि क्रियाओं में भी इन कालों के यही प्रत्यय जुड़ते हैं।
किन्तु उनमें दीर्घ या स्वरों का परिवर्तन नहीं होता है।
प्राकृत काव्य-मंजरी
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