________________
४. महावत से रहित, सूड के सामने आने वालों को मारता हुआ, मुख के सामने
चलते हुए काल की तरह, अकारण क्रोधी,
५. पैर में बंधी हुई रस्सी को तोड़ता हुआ, भवनों, बाजारों और मंदिरों को चूर्ण
करता हुआ प्रचंड वह हाथी क्षणमात्र में कुमार के सामने पहुँच गया।
६. उस प्रकार के रूप को धारण करने वाले उस हाथी और कुमार को देखकर
नागरिक लोगों के द्वारा गंभीर स्वर से कहा गया- 'हाथी के रास्ते से हट जाओ। हट जाओ।'
७. सुन्दर गति से गमन करने वाले अपने घोड़े को छोड़कर कुमार के द्वारा इन्द्र
के हाथी ऐरावत के समान वह हाथी . ललकारा गया ।
८. कुमार के शब्द को सुनकर मद-जल के प्रवाह को झराने वाला, क्रुद्ध यमराज
की तरह वह हाथी कुमार की तरफ शीघ्र दौड़ा।
६. किन्तु प्रसन्नचित्त कुमार के द्वारा दुपट्टे को लपेटकर (उसे) दौड़ते हुए हाथी की
सूड़ के सामने फेंका गया।
१०. क्रोध से धम-घमाता हुआ (वह हाथी) दाँत से (कुमार पर) प्रहार करता है
और वह कुमार उस हाथी के पिछले भाग पर दृढ़ मुष्टि के प्रहार से चोट करता है।
११, तब (वह हाथी) पलटता है, दौड़ता है, चलता है, लड़खड़ाता है तथा झुक जाता
है। क्रोध से धम-धमाता हुआ वह चक्र-भ्रमण की तरह घूमता है।
१२. अति बहुत समय तक उस श्रेष्ठ हाथी को (कई चक्कर) खिलवाकर अपने वश
में करके (वह कुमार) तभी उसके कन्धे पर चढ़ गया।
१३. और नगर के सभी लोगों के लिए मनोहर उस गज-क्रीडा को अन्तःपुर(रनिवास)
के साथ राजा ने देखा।
प्राकृत काव्य-मंजरो
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org