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८. यदि संसार में अच्छेपन की ध्वजा लेकर (चलना) चाहते हो तो लोगों को
कडुआ मत बोलो और (उनके द्वारा) कडुआ बोले जाने पर भी मधुर (वचन) बोलो।
६. मजाक के द्वारा भी मर्म-वेधक और व्यर्थ के वचन मत बोलो। सच कहता
हूँ- संसार में इससे (बड़ा कोई) दुर्भाग्य नहीं है।
१०. 'हे राजन! शास्त्रों में, विद्वानों के वचनों में एवं धर्म में व्यसन (अभ्यास ) तथा
कलाओं में पुनरुक्त (बार-बार कथन) करो तब सज्जनों के बीच में गिनने के योग्य होओगे।
११. लोगों के दोष मात्र को मत ग्रहण करो, '(उनके) विरले गुणों को भी प्रकाशित
करो। (क्योंकि) लोक में घोंघों को प्रचुरता वाला समुद्र भी रत्नों की खान (रत्नाकर) कहा जाता है।
१२. जब तक (साहसी ) पुरुष (कार्यों की तरफ अपना) हृदय (ध्यान) नहीं देते हैं
तभी तक कार्य पूरे नहीं होते हैं। किन्तु (उनके द्वारा कार्यों के प्रति) हृदय लगाचे से ही बड़े कार्य भी पूर्ण कर लिये जाते हैं ।
१३. बर्फ की तरह शीतल एवं चन्द्रमा की तरह निर्मल सज्जन व्यक्ति पद-पद पर
विचलित किये जाने पर भी उसके कारण से कोमल मृणाल के समान (अपने) स्वेहतन्तु को नहीं उखाड़ता है।
१४. निर्मल (चरित्र वाले) सज्जन पुरुषों के हृदय में थोड़ा भी अपमान क्षोभ उत्पन्न
करता है । देखो, हवा से हलका धूलि का कण भी आँख को दुखाता है।
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प्राकृत काध्य-मंजरी
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