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६. उसके बाद उत्साह से आनन्दित शरीर वाले समुद्रदत्त ने कहा- 'सरल अथवा
कठिन (कार्य) धैर्यशाली पुरुषों के लिए क्या (बाधा) करता है ?' ७. 'पूर्वज व्यक्तियों के द्वारा कमाये हुए धन आदि को कोन (व्यक्ति) इच्छा से खर्च
नहीं करता है ? किन्तु जो स्वयं के द्वारा अजित (धन का) उपभोग करते हैं
वे उत्तम पुरुष कोई (विरले) ही होते हैं।' ८. 'अधिक कहने से क्या, जैसे-तैसे (भी हो) मुझे अवश्य जाना है।' उस प्रकार के
निश्चय को जानकर उनके (माता-पिता) द्वारा किसी-किसी प्रकार से (उसे)
भेज दिया गया। ६. समुद्र की पूजा करके, माता-पिता के चरणों में नमनकर एवं उनके द्वारा आशीष
दिया हुआ (वह) सेठ-पुत्र जहाज में चढ़ गया। १०. वणिक्-पुत्रों के साथ, अनेक चतुर मित्रों सहित (वह समुद्रदत्त) अनुकूल पवन
के द्वारा (किसी) एक द्वीप में पहुँचा । ११. वहीं पर ही बेचने योग्य माल को मन में इच्छित लाभ द्वारा बेचकर (एवं ) नये
(माल) को लेकर उस समुद्रदत्त द्वारा (घर की ओर) जहाज रवाना कर दिया गया।
१२. जब तक कुछ रास्ते को (वह जहाज) गया तभी कालिया हवा उठी, बादल हो
गये एवं दुष्ट व्यक्ति की तरह (तेज) आवाज से मेघ गरजा । १३. गरीबी से दुखी व्यक्ति के मन की तरह जैसे ही जहाज डोलता है, मल्लाह लोग
शीघ्र ही नीचे लंगर डाल देते हैं। १४. आकुल-व्याकुल हृदयवाला (वह समुद्रदत्त) जब तक विशाल पाल को फैलाता
है और जब तक बहुत सी आयुलताओं (मृत्यु से बचने के उपायों) को फैलाता है१५, तभी समुद्र के बीच में वह जहाज इच्छित रहस्य की तरह नष्ट हो गया । कोई
(वहीं) मर गया तो कोई फलक (लकड़ी के पाटिये) को प्राप्त कर (समुद्र) पार हो गया।
प्राकृत काव्य-मंजरी
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