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________________ २. 'मेरे राजकुमारों के बीच में कौन (राजकुमार) चूड़ामणि से सुशोभित फण के अग्रभाग वाले महानाग शेष की तरह पृथ्वी की धुरा को धारण करने में समर्थ होगा?' ३. ऐसा सोचकर हाथी, घोड़े, शस्त्र, रथ आदि से भरे हुए सम्पूर्ण पुराने शस्त्रागार को उसने चारों दिशाओं से आग लगवा दी। ४. उस अग्नि की भयंकर ज्वाला को देखकर राजा राजकुमारों को कहता है - 'अरे राजकुमारो! (इस आग में से) जो (कुमार) जो कुछ भी प्राप्त करता है वह सब उसे दे दिया जायगा।' ५. राजा के आदेश को सुनकर राजकुमार तड़-तड़ की आवाज करते हुए, जलते हुए बांसों के उस घर में घुसकर हाथी आदि को निकाल लेते हैं । ६. किन्तु राजकुमार श्रेणिक के द्वारा जलते हुए उस मकान के भीतर प्रवेशकर शीघ्र ही चतुरता से बिम्ब नामक जयढक्का (नगाड़ा) प्राप्त कर ली गयी। ७. दूसरे राजकुमार मजाक में उपहास करते हुए हाथ में ली हुई (उस) बिम्ब (नगाड़ा) वाले श्रेणिक को 'बिम्बसार' कहते हैं । ८. इसको देखकर राजा ने सोचा- 'श्रेणिक के द्वारा अच्छा किया गया है जो कि राज्य के इस प्रथम अंग जयढक्का को प्राप्त किया गया।' ९. इसके बाद (कभी) एक बार राजकुमारों के पराक्रम, त्याग की परीक्षा करने के लिए राजा पकवान बनवाकर अपने कुमारों को भोजन करवाता है । १०. पकवान परोसकर राजा के द्वारा कुत्तों के झुण्ड को (वहाँ) बुलवाया गया। दूसरे (राजकुमार) उनको आता हुआ देखकर भाग गये। ११. किन्तु कुमार श्रेणिक दोनों बगलों में स्थित दूसरे राजकुमारों की थालियों को लेकर कुत्तों के लिए फेंक देता है और भय से रहित मनवाला (वह) स्वयं की थाली जीमता रहता है। प्राकृत काव्य-मंजरी Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003806
Book TitlePrakrit Kavya Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages204
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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