________________
१०-११. पुत्र के समान आयु से युक्त (उनको) देखकर पुत्र के स्नेह की उत्सुकता
से विदेश में स्थित अपने पुत्र की जानकारी पूछने वाली (उस वृद्धा) का घड़ा टूट गया। और पानी (सरोवर के) पानी में मिल गया। जब तक वह वृद्धा उससे दुखी मनवाली और चिन्ता से युक्त होती है तभी एक (अविनीत शिष्य)
ने कहा - १२ 'यदि निमित्तशास्त्र का यह वचन- 'उससे उत्पन्न उसी में मिल जाता है, सत्य है
तो हे भद्र, तुम्हारा पुत्र मर गया है। व्यर्थ में दुख करने से क्या (फायदा)?
१३. दुसरे (विनीत शिष्य) ने कहा- 'निमित्तशास्त्र में प्राप्त यह वाणी (सही ढंग
से) मिलायी हुई नहीं है। इसलिए हे भद्रे ! तुम्हारा पुत्र जीवित है । घर में जाकर देखो।'
१४. उस (पुत्र) को (घर में) देखकर आभूषणों और रुपयों के साथ (वह वृद्धा)
एक क्षण में वापस आ गयी। (गहने-रुपये) समर्पित कर संतुष्ट (वह वृद्धा) आनन्दित होकर अपने घर चली गयी।
१५. तब (एक) भाई के द्वारा पूछा गया- 'हे भाई! कहो न, यह (कथन) विपरीत
(कैसे) हो गया ?' दूसरे ने कहा- 'यह सत्य है- उससे उत्पन्न उसी में (मिलता
१६. पानी पानी में मिल गया, मिट्टी से बना हुआ घड़ा (उसी में) मिल गया।
__अतः यह स्पष्ट (सरल) मार्ग है कि माता में पुत्र मिलता है। १७. इसलिए तुम खेद मत करो और (अपने) गुरु के सम्बन्ध में भी वैर धारण मत
करो । गुरु लोग भी जीव (व्यक्ति) में (उसकी) योग्यता के अनुसार ही गुणों की स्थापना करते हैं।
000 पाठ १३ : राजकुमारों की बुद्धि-परीक्षा १. इसके बाद एक बार कभी रात्रि के अन्तिम पहर में सुखपूर्वक जगा हुआ राजा
(प्रसेनजित) इस प्रकार सोचने लगा -
१५.
प्राकृत काव्य-मंजरी
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org