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४. धम्मपद - प्राकृत भाषा में लिखा हुआ धम्मपद प्राकृत भाषा के
एक नये रूप को प्रकट करता है। ५. अश्क्योष - नाटककार अश्वघोष ने अपने नाटकों में जिस प्राकृत
का प्रयोग किया है, वह अर्धमागधी, शोरसेनी, मागधी
आदि का मिला-जुला रूप है । मध्य युग :
ईसा की दूसरी शताब्दी से छठी शताब्दी तक प्राकृत भाषा का प्रयोग निरन्तर बढ़ता रहा । अतः इसे प्राकृत भाषा और साहित्य का समृद्ध युग कहा गया है। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में इस समय प्राकृत भाषा का प्रयोग हुआ है । काव्य-लेखन की भाषा को सामान्य प्राकृत कहा गया है। क्योंकि इसमें प्राकृत भाषा के प्रयोग में प्राय: एकरूपता प्राप्त होती है। इस सामान्य प्राकृत को महाराष्ट्री प्राकृत कहा गया है। इस समय में मागधी और पैशाची प्राकृतों का प्रयोग भी साहित्य में हुअा। प्राकृत वैयाकरणों ने इन तीनों प्राकृतों के लक्षण अपने ग्रन्थों में स्पष्ट किये हैं। महाराष्ट्री प्राकृत :
___ मध्य युग में प्राकृत का जितना अधिक विकास हुआ, उतनी ही उसमें विविधता आयी। किन्तु साहित्य में प्रयोग बढ़ जाने के कारण विभिन्न प्राकृतें महाराष्ट्री प्राकृत के रूप में एकरूपता को ग्रहण करने लगीं। महाराष्ट्री प्राकृत के कुछ नियम निश्चित हो गये। उन्हीं के अनुसार कवियों ने अपने ग्रन्यों में महाराष्ट्री प्राकृत का प्रयोग किया है। प्राकृत के अधिकांश काव्य-ग्रन्थ महाराष्ट्री प्राकृत में लिखे गये हैं । पहली शताब्दी से वर्तमान युग तक इन दो हजार वर्षों में कई ग्रन्थ लिखे गये हैं, जो कई विषयों पर हैं । प्रस्तुत पुस्तक में भी इसी महाराष्ट्री प्राकृत की सामान्य व्याकरण एवं प्राकृत के
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प्राकृत काव्य-मंजरी
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