________________
पाठ 39 : पाइय-अहिलेहो
पाठ-परिचय :
भारतवर्ष में लिखित सामग्री के सबसे प्राचीन अवशेष शिलालेख हैं। उपलब्ध शिलालेखी साहित्य में सम्राट अशोक के शिलालेख सबसे प्राचीन हैं, जो प्राकृत (गद्य) में लिखे गये हैं। उसके बाद सम्राट खारवेल, सातवाहन राजाओं, पहलव नरेशों आदि ने प्राकृत भाषा का उपयोग शिलालेखों, मुद्राओं आदि में किया है। उसी परम्परा में प्रतिहार वंश के राजा 'कक्कुक' का प्राकृत शिलालेख जोधपुर से ३० किलोमीटर उत्तर की ओर घटयाल नामक गाँव में प्राप्त हुआ है। इसे वि. सं० ६१८ (ई• सन् ८६१) में लिखाया गया था।
इस शिलालेख में राजा कक्कुक ने जनता के हित के लिए जो कार्य किये थे, उनका उल्लेख है। प्राकृत भाषा एवं साहित्य की दृष्टि से भी राजस्थान के इस प्राकृत शिलालेख का महत्त्व है। पूरे शिलालेख में १ से २३ गाथाएँ हैं। उनमें से ६ से १८ गाथाएँ प्रस्तुत पाठ में उद्धत हैं।
सिरि भिल्लुप्रस्स तणुप्रो सिरिकक्को गुरुगुणेहि गारविप्रो । अस्स वि कक्कुन नामो दुल्लहदेवीए उप्पणो ॥६॥ ईसि विनासं हसिग्रं महुरं भजिअं पलोइअ सोम्म । णमय जस्स ण दीरणं रोसो थेप्रो थिरा मेत्ती ॥७॥ रणो जंपिनं ण हसिग्रंण कयं ण पलोइअंण संभरिअं। ण थियं परिन्भमिश्र जेण जणे कज्ज-परिहीणं ।।८॥
सुत्था दुत्थ वि पया अहमा तह उत्तिमा वि सोक्खेण । बणरिण व जेण धरिआ णिच्चं रिणय मंडले सव्वा ॥६॥
उवरोह रामअच्छर लोहेहि इ गायवज्जिजं जेण । ग कमो दोण्ह विसेसो बवहारे कवि मणयं पि ॥१०॥
१२४
प्राकृत काव्य-मंजरी
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org