________________
अभ्यास
१. शब्दार्थ :
...
........
............
........
....
............
....
........
....
..
....
सप्रल = सभी परिणाम = अभिव्यक्ति जन = जग घणं = पूर्ण तुच्छं = तिरस्कारयोग्य गारव = गौरव दोग्गच्च = निर्धनता असमग्ग = अपूर्ण वयरिणज्ज= निन्दा सलाहा = प्रशंसा मऊह = किरण सिव : कल्याण
काम = कांच सुलह = प्राप्त छाया = प्रतिबिम्ब २. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए : शब्दरूप मूलशब्द विभक्ति वचन
लिंग जाण कइणो लच्छीए हिअआइं महीए गुणाण मरणोण सा संधिवाक्य विच्छेद
संधिकार्य जअमिणमो
....."+......" सारमिरणं
........ .... सुअगाववाअ तेउग्गमो
""""+ .... विम्हअमुवेन्ति
""""+....... (ग) समासपद
समासनाम इंदुमऊहा
"""""+........ गुणकग्जम्मि
...."+.... कावधारणं का+धारणं
द्वि० त.
...........
....
.......
....
............
..
....
विग्रह
१२२
प्राकृत काव्य-मंजरी
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org