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पाठ-परिचय :
पाठ २५ : कहा- वण्णणं
महाकवि कोऊहल के द्वारा रचित लीलावईकहा कथा एवं काव्य ग्रन्थ है P यह ग्रन्थ लगभग ६ वीं शताब्दी में लिखा गया था । इसका सम्पादन] डॉ. ए. एन. उपाध्ये ने किया हैं ।
लीलावईकहा में प्रतिष्ठान नगर के कुमारी लीलावती के जीवन की कथा है। विभिन्न पक्षों का काव्यात्मक शैली में वर्णन वर्णन की परिपाटी से परिचय कराने के गाथाएँ यहाँ चयनित की गयी हैं। उनमें राजा आदि का वर्णन है ।
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राजा सातवाहन और सिंहलद्वीप की राज इसमें महाकाव्य के अनुसार जीवन के किया गया है। प्राचीन काव्यों में कथा लिए लीलावईकहा के कथा-वर्णन की कुछ सज्जन - दुर्जन, शरद ऋतु, हंस, चन्द्रमा, देश,
जयंति ते सज्जरण - भाणुरो सया -दोसा विसन्ति संगमे
वियारिगो जारण सुवण-संचया ॥ कहाणुबन्धा कमलायरा इव ॥१॥
सो जयउ जेरण सुया वि दुज्जरगा इह विरिणम्मिया भुवणे । रगतमेण विणा पावन्ति चन्द - किरणा वि परिहावं || २ ||
सज्ज - संगेण वि दुज्जरगस्स गहु कलुसिमा समोसरइ । ससि - मण्डल- मज्भः परिट्ठियो वि कसरगो च्चिय कुरंगो || ३ ||
तस्स तर एरण एवं प्रसार- मइरणा वि विरइयं सुराह । कोऊहले लीलावइ त्ति णामं कहा- रयणं ॥४॥
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जह मियंक - सरि-कर-पहररण- दलिय तिमिर -करि-कुम्भे । विक्खित्त - रिक्ख-मुत्ताहलुज्जले सरय- रयणी ॥५॥
इमिणा सरण ससी सरिणा वि रिगसा रिसाए कुमुय-वरणं । कुमुय-वरण व पुलिगं पुलिरोग व सहइ हंस- उलं ||६||
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प्राकृत काव्य - मंजरी
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