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अभ्यास १. शब्दार्थ :
उक्किट्ठ = सर्वोच्च मंदर = मेरु पर्वत जय = संसार सव्व
= सब तम्हा = इसलिए रिणग्गंथ = संयत व्यक्ति रणं = उस अप्परणो= अपनी अत्तकाम= महापुरुष गब्भ = आधार पिंड = समूह खरणमित्त= क्षणमात्र वरणसंड = वन-समूह छार = राख पलाल = भूसा
सिहामणि = सिरमौर खंती = शान्ति (क्षमा) हरिणंक = चन्द्रमा २. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए : शब्दरूप मूलशब्द
विभक्ति वचन लिंग मंदराओ
मंदर
पंचमी ए०व० आगासाओ अत्तकामेहि
पु०
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....
....
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खंती
केण
संधिकार्य
अ+उ=ओ
(ब) संधिवाक्य
मंगलमुक्किट्ठ अत्तोवम्मेण सव्वायरमुवउत्तो सव्वे सिमासमारणं तस्सेह
विच्छेद ..."+......"
अत्त+उम्बमेण सव्वायर+उवउत्तो सव्वेसि+आसमाणं
तस्स+एह
....
....
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समासनाम
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समासपद पारणवह जीववहो सव्वसत्थाणं वदगुणाणं
विग्रह पारगाण+वहं
"""+......... सव्वाण+सत्थाणं वदारण+गुरगाणं
प्राकृत काव्य-मंजरी
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