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पाठ 23 : हिंसा-खमा पाठ-परिचय :
प्राकृत साहित्य के कई ग्रन्थों में विभिन्न जीवन-मूल्यों का वर्णन प्राप्त होता है। अहिंसा और क्षमा भारतीय संस्कृति के प्रमुख जीवन-मूल्य हैं। छोटे से छोटे प्राणी के जीवन का महत्त्व समझना अहिंसा का मूलमन्त्र है। सभी प्राणी जीने को इच्छा रखते हैं। किसी को दु:ख प्रिय नहीं है। अत: सब प्राणियों का आदर किया जाना चाहिए। किसी को पीड़ा नहीं पहुँचानी चाहिए, यही ज्ञान का सार है। इस प्रकार की अहिंसा को आकाश से भी व्यापक और पर्वत से भी ऊँचा (श्रेष्ठ) कहा गया है।
जीवों की रक्षा करने से उन्हें भय से मुक्ति मिलती है। अभय प्रदान करने से सभी प्राणी सद्भाव से जीवनयापन करते हैं। समर्थ प्राणी, अपराधी प्राणियों के प्रति भी क्षमाभाव रखते हैं। क्योंकि किसी प्राणी का किसी दूसरे प्राणी से कोई स्थायी वैरभाव नहीं है। क्षमा के वातावरण से मैत्रीभाव विकसित होता है। इन्हीं सब अहिंसा, अभय, क्षमा आदि भावनाओं से सम्बन्धित कुछ गाथाएँ यहाँ प्रस्तुत हैं, जो प्राकृत के विभिन्न ग्रन्थों से संकलित की गयी हैं।
धम्मो मंगलमुक्किट्ट, अहिंसा संजमो तवो।। देवा वि तं नमंसन्ति, जस्स धम्मे सयामणो ॥१॥ तुग न मंदरानो, आगासायो विसालयं नत्थि । जह जह जयंमि जागासु, धम्मम हिंसासमं नत्थि ॥२॥ सव्वे जीवा वि इच्छन्ति, जीविउ न मरिज्जिउं । तम्हा पाणवहं घोरं, निग्गन्था वज्जयन्ति णं ॥३॥ जह ते न पिनं दुक्खं जाणिय एमेव सव्वजीवाणं । सव्वायरमुवउत्तो, अत्तोवम्मेण कुणसु दयं ॥४॥ जीववहो अप्पवहो. जीवदया अप्पणो दया होइ । ता सव्व-जीव-हिंसा, परिचत्ता अत्तकामेहिं ॥५॥
प्राकृत काव्य-मंजरो
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