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पञ्चमः खण्डः - का० ४९ प्रतिभातानुपलक्षणं युज्येताऽपि, भवतस्तु सविकल्पाध्यक्षवादिनो गृहीताऽनुपलक्षणमयुक्तम् निश्चयानामुपलक्षणमन्तरेण अपरग्रहणाऽसम्भवात्, न हि निश्चयैरनिश्चितं गृहीतं नाम ।
किञ्च, यद्यत्रानुगतं निमित्तं नित्यं साध्यते तदा तस्याऽसिद्धिः, विपर्ययसिद्धेः। तथाहि - अनुगताभिधानप्रत्ययाः क्रमवत्कारणप्रभवाः, क्रमेणोपजायमानत्वात्, प्रदीपज्वालाप्रभवक्रमभाविप्रत्ययवत् । यदि तु अक्रमसामान्यहेतुका एतेऽभविष्यन्न क्रमेणोत्पत्तिमासादयिष्यन् अविकलकारणत्वात् । तथापि तेषां तद्धेतुकत्वे सर्वं सर्वहेतुकं स्यात् इति प्रतिनियतकार्यकारणभावव्यवस्थाविलोपप्रसक्तिः। अनैकान्तिकश्च हेतुः, षट्सु पदार्थेसु अपरानुगतनिमित्ताभावेऽपि ‘पदार्थाः पदार्थाः' इत्यनुगतप्रत्ययोपलब्धेः। न च सदुपलम्भकप्रमाणविषयत्वादिकमनुगतं निमित्तमत्राप्यस्ति इत्यव्यभिचारः, प्रागुक्तोत्तरत्वादस्य । न च विपक्षे वृत्तावस्य बाधकं प्रमाणमस्तीति संदिग्धविपक्षव्यावृत्तिकत्वादनैकान्तिकः । होने पर भी अभासित रहना ऐसा मत प्रदर्शित करना ठीक नहीं है क्योंकि आप के मत में तो निर्विकल्प से गृहीत पदार्थ ही सविकल्प में परस्पर सम्बद्धरूप से भासित होता है। निश्चयों के द्वारा उपलक्षित होना या गृहीत होना एक ही बात है, उस में कोई भेद नहीं है, अतः निश्चय से जो अनिश्चित हो उस को आप गृहीत भी नहीं मान सकते, यानी अप्रतिभासित रहता है ऐसा नहीं मान सकते।
* विपरीत सिद्धि एवं साध्यद्रोह दोष * और भी विवादास्पद बात यह है कि यदि आप अनुगत निमित्त को नित्य सिद्ध करना चाहते हैं तो अनुगत निमित्त की ही असिद्धि हो जायेगी क्योंकि स्थिति उस से विपरीत सिद्ध होती है। देखिये प्रयोग – अनुगत शब्दप्रयोग और अनुगत प्रतीति क्रमशः उत्पत्तिशील कारणों से जन्य है क्योंकि वे भी क्रमशः उत्पत्तिशील हैं। उदा० प्रदीपज्वाला की प्रतीति क्रमशः उत्पत्तिशील हैं अतः प्रदीपज्वाला भी क्रमशः उत्पत्तिशील है। यदि अनुगत व्यवहार और प्रतीति अक्रमिक सामान्य पदार्थहेतुक होती तो उन की प्रवृत्ति कभी भी क्रमिक न होती, क्योंकि आदि में ही उन की सामग्री सकलरूप से उपस्थित है। यदि फिर भी क्रमिक भाव के प्रति अक्रमिक भाव को हेतु मानते रहेंगे तो फिर कोई भी वस्तु किसी भी अननुरूप कार्य का हेतु बन सकेगी, फलतः नियत कार्य-कारणभाव की व्यवस्था का विलोप प्रसक्त होगा। ___ तथा अनुगतप्रत्ययत्व हेतु भी आप के अनुमान में साध्यद्रोही है, क्योंकि ‘पदार्थ-पदार्थ' इस प्रकार होने वाली अनुगतप्रतीति में आप का हेतु तो रहता है किन्तु अनुगतनिमित्तमूलकत्व साध्य उस में नहीं रहता, क्योंकि आप के मतानुसार सकल पदार्थ में सत्ता भी अनुगत नहीं है। यदि ऐसा कहें कि- यहां 'सत्त्वरूप से उपलब्धि कराने वाले प्रमाण का विषयत्व' रूप अनुगत निमित्त विद्यमान होने से हेतु साध्यद्रोही नहीं हो सकता, – तो यह ठीक नहीं है क्योंकि पहले ही इस का उत्तर दे दिया है कि तथाविध प्रमाणविषयत्व प्रमाणादि और विषयतादि के भेद से भिन्न भिन्न है, अतः यहाँ कोई भी एक अनुगत विषयतारूप निमित्त न होने से साध्य असिद्ध है। विषयता विषयभेद से पृथक् पृथक् होती है।
* अनुगतप्रतीति से वस्तुव्यवस्था अशक्य * यदि ऐसा कहने जाय कि – 'अनुगत निमित्त न होने पर भी ‘पदार्थ-पदार्थ' इत्यादि अनुगतप्रतीति को मंजुर करेंगे तो प्रतीतिभेदमूलक विषयभेद की जो व्यवस्था की जाती है उस में विघ्न होगा, क्योंकि अनुगतप्रतीति
और व्यावृत्ताकार प्रतीति में आप को विषयभेद मंजुर नहीं है। फलतः रूप-आकृति आदि की प्रतीति के भेद से रूप और आकृति आदि विषय में भेद की व्यवस्था शक्य न होने से रूपादिप्रतीति अपने रूपादि विषयों
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