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(सन्मति० पञ्चमखंड - विषयानुक्रम) विषय पृष्ठाङ्क | विषय
पृष्ठाङ्क प्रकाशकीय
| सातवीं गाथा प्रस्तावना
आत्मस्वभाव भी अनेकान्तगर्भित विषयानुक्रम
9 | आठवीं गाथा प्रथमगाथा व्याख्यानारम्भ (तृतीयकाण्ड) १ | द्रव्य और गुण का सर्वथा भेद-वैशेषिकादिमत सामान्य-विशेषयोः परस्परानुवेधः
| नवमी गाथा सामान्य एवं विशेष का परस्पर अविभक्तस्वरूप | गुण-गुणी में एकान्तभेद का परिहार एकान्तभेदपक्षे दोषनिरूपणम्
| दसवीं-ग्यारहवीं गाथा द्वितीयगाथा
| गुणार्थिक क्यों नहीं बताया ? एकान्तभेद-पक्ष में प्रमाणविरोध
। सूत्रों में वर्णादि के लिये ‘पर्याय' शब्द का प्रयोग १९ प्रस्तुतकाण्ड का आरम्भ व्यर्थ होने की आशंका ३ बारहवीं गाथा प्रस्तुत काण्ड का आरम्भ सार्थक है - उत्तर ४ | पर्यायशब्द गुणशब्द समानार्थ हैं तो क्या ? समीक्षितार्थवचनस्वरूपनिरूपणम्
| गाथा - १३-१४ तृतीयगाथा
४ | गुणार्थिकनय भगवदुपदिष्ट होने की आशंका आप्तवचन की विशेषता
४ | सिद्धान्त में गुणशब्द गणितशास्त्रोक्तधर्मसूचक वर्तमान पर्याय की त्रैकालिक सत्ता मानने | गाथा - १५ पर शंका-समाधान
गुणशब्द पर्यायभिन्नअर्थ प्रतिपादक नहीं पूर्वोत्तर अवस्था में एक ज्ञानात्मा की अनुवृत्ति ६ | गाथा - १६ आत्मा और ज्ञान-पर्याय में भेदाभेद
| एकान्त अभेदवादी की आशंका परमाणु एवं व्यणुकादि द्रव्यों का तादात्म्य ८ | गाथा - १७-१८ । परमाणु का उत्पत्ति-प्रलय सयुक्तिक
८ | गाथा - १९ समवायगर्भित अयुतसिद्धि का निरसन
९ | एकान्तअभेदवादी के पक्ष में प्रसञ्जन 'द्रव्यान्तर' शब्द की अन्य दो व्याख्या १० | गाथा - २०-२१ चतुर्थगाथा
सम्बन्धविशेष से सम्बन्धिविशेष की शंका अतीत-अनागत काल में वर्तमानत्व की आपत्ति ११ का समाधान वर्त्तमानत्व की आपत्ति का निराकरण
| गाथा - २२ पञ्चमगाथा
१२ | परनिमित्त वैषम्य परिणाम की संगति विसदृश-सदृश पर्यायों से अस्ति-नास्ति विमर्श १२ | गाथा - २३-२४ व्यंजनपर्याय-अर्थपर्याय से अस्ति-नास्ति विमर्श । द्रव्य और गुण के लक्षण में दोषोद्भावन वर्त्तमानपर्याय में भी भजना
१३ | द्रव्य और गुण के लक्षण में दोषोद्भावन छठ्ठी गाथा
१४ | उपाध्यायजीकृत अवतरणिका की तुलना षट्स्थान हानि-वृद्धि का विवरण
१४ | भेदपक्ष में गुणों के मूर्त-अमूर्त विकल्प
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