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________________ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड - २ एकान्तभेदे सम्बन्धरूपताया एवाऽयोगात् । कथंचिन्निमित्तानां कारकेभ्योऽभेदे अनेकान्तवादापत्तिः । तन्न सकलकारणानि साकल्यम् । B अथ कारणधर्मः साकल्यम् । ननु सोऽपि यदि कारकाऽव्यतिरिक्तस्तदा धर्ममात्रम् कारकमात्रं वा। अथ "व्यतिरिक्तस्तदा 'सकलकारकधर्मः साकल्यम्' इति सम्बन्धाऽसिद्धि:, सम्बन्धेऽपि यदि सर्व5 कारणेषु युगपदसौ सम्बध्यते तदा बहुत्वसंख्यातत्पृथक्त्व-संयोग-विभाग-सामान्यानामन्यतमस्वरूपाऽऽपत्तिस्तस्येति तद्दूषणेन तस्य दूषितत्वात् न साधकतमत्वमुपपत्तिमत् । अथ तत्कार्यं साकल्यम् । तदप्ययुक्तम्- नित्यानां साकल्यजननस्वभावत्वे सर्वदा तदुत्पत्तिप्रसक्तेः । ततश्चैकप्रमाणोत्पत्तिसमये सकलतदुत्पाद्यप्रमाणोत्पत्तिप्रसक्तिः तज्जनकस्वभावस्य कारणेषु पूर्वोत्तरकालभाविनस्तदैव भावात्। तथाहि— यदा यज्जनकमस्ति तत् तदोत्पत्तिमत् यथा तत्कालाभिमतं प्रमाणम्, अस्ति च 10 नहीं कर सकेगा क्योंकि उन में भी एकान्त भेद है । यदि ऐसा कहा जाय 'निमित्तों का कारकों से सर्वथा भेद नहीं है, कथंचिद् अभेद भी जरूर तब तो अनेकान्तवाद गले में आ पडेगा । निष्कर्ष :- ^सकल कारणों का साकल्य असंगत है। ५६ * B कारकसाकल्य कारकधर्मरूप नहीं है सकल कारक = साकल्य यह पहला पक्ष निरस्त हो गया। अब दूसरा पक्ष है कारणों का धर्म है कारकसाकल्य । पूर्ववत् इस पक्ष में भेद - अभेद विकल्पों की असंगति आयेगी। यदि वह धर्म कारणों से सर्वथा अभिन्न होगा तब या तो एकमात्र धर्म अस्तित्व में रहेगा या तो एकमात्र कारक ही अस्तित्व में होगा, कारक और उन का धर्म ऐसा द्वैत नहीं रहेगा । "यदि दूसरा विकल्प सर्वथा भेद का मान लेंगे तो 'सकल कारकों का धर्म = साकल्य' इस वाक्य में षष्ठी विभक्ति के लिये 20 कोई सम्बन्ध चाहिये जो कि सिद्ध नहीं है। यदि किसी सम्बन्ध को सिद्ध कर लेंगे तो उस को कैसा मानेंगे ? क्या वह एक होता हुआ भी एक साथ सभी कारणों से जुडेगा ? हाँ । तब तो वह सम्बन्ध बहुत्वसंख्या आदि पाँच पदार्थों में से कोई एक या उन के जैसा ही होगा । बहुत्व संख्या, तत्पृथक्त्व, संयोग, विभाग और जाति ये पाँच पदार्थ ऐसे ही हैं जो एक होते हुए भी अनेक आश्रयों के साथ जुड़े रहते हैं । फलितार्थ यह है कि बहुत्व आदि पदार्थों की सिद्धि के ऊपर जो दूषण लगे 25 हुए हैं वे सब दूषण प्रस्तुत में इस कारणधर्म के ऊपर भी लग जायेंगे, वह धर्म भी दूषित हो कर रहेगा कुछ काम का न होगा । 15 निष्कर्ष :- कारकधर्मरूप साकल्य की किसी भी रूप में संगति नहीं होगी । * C कारक साकल्य कारकों का कार्य नहीं "तीसरे विकल्प में, साकल्य को कारकों का कार्य मानना अयुक्त है । नित्य कारकों का साकल्योत्पाद 30 स्वभाव सदा अक्षुण्ण होने से सर्वदा सभी साकल्यों का उद्भाव जारी रहेगा । उसका नतीजा यह होगा कि उस साकल्य से किसी एक प्रमाण की उत्पत्ति के साथ साथ उन से उत्पाद्य सभी प्रमाणों की एक साथ उत्पत्ति गले में आ पडेगी। कारण, पूर्वोत्तर सर्वकालभावि साकल्यजनकस्वभाव उन कारकों Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003804
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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