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सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-२ अथात्र सन्तान एव प्राप्यते, तर्हि स एव वस्तुसन् भवेद् इति न सामान्यधर्माः स्वरूपेणाऽसन्तोऽभ्युपगन्तव्याः । अक्षणिकस्य च वस्तुनः सिद्धेः; यदुक्तं भवद्भिः- “दर्शनेन क्षणिकाऽक्षणिकत्वसाधारणस्यार्थस्य विषयीकरणात् कुतश्चिद् भ्रमनिमित्तादक्षणिकत्वारोपेऽपि न दर्शनमक्षणिकत्वे प्रमाणम् किन्तु प्रत्युताऽप्रमाणम्
विपरीतावसायाक्रान्तत्वात्, क्षणिकत्वेऽपि न तत् प्रमाणम् अनुरूपाऽध्यवसायाऽजननात्, नीलरूपे तु 5 तथाविधनिश्चयकरणात् प्रमाणम्"- इति तद् विरुध्यते ।
किञ्च, एवंवादिन एकस्यैव दर्शनस्य क्षणिकत्वाऽक्षणिकत्वयोरप्रामाण्यम् नीलादौ तु प्रामाण्यं प्रसक्तमित्यनेकान्तवादाभ्युपगमो बलादापपति। न च क्षणग्रहणे तद्विपरीतसन्तानावसायोत्पत्तौ दर्शनस्य
* सन्तान वस्तुतत्त्व की सिद्धि से बौद्धमत में आपत्ति * यदि कहा जाय – सन्तान के अध्यवसाय के बाद क्षण की नहीं, सन्तान की ही प्राप्ति होती 10 है - तो सन्तान ही सद् वस्तुरूप से सिद्ध हुआ। अब आप सत्ता-द्रव्यत्वादि जातिभूत धर्मों को असत्स्वरूप
नहीं मान सकेंगे क्योंकि अनेक सन्तानियों में अनुगत अनेकक्षणव्यापक सन्तान को सत मानने पर तो अनेक सत् या द्रव्यादि पदार्थों में अनुगत सत्ता-द्रव्यत्वादि नित्य जातियों को भी वस्तुसत् मानना होगा। सन्तान कहो या सामान्य, कोई फर्क नहीं रहता। इस प्रकार जब अक्षणिक सन्तानादि वस्तुसत्
पदार्थ आपने मान लिया तब कहीं पर जो आपने यह निवेदन किया है कि - “दर्शन तो न क्षणिक 15 न अक्षणिक - बिलकुल साधारण (= शुद्ध) अर्थ को ही विषय बनाता है। अबुझ लोग यद्यपि वासनादि
भ्रमनिमित्त से भ्रान्त हो कर उस शुद्ध क्षण में अक्षणिकत्व का आरोप कर बैठते हैं, तथापि दर्शन उस के अक्षणिकत्व को प्रदर्शित नहीं करता, अत एव अक्षणिकत्व के विषय में दर्शन प्रमाण नहीं है अपितु अप्रमाण ही है, क्योंकि दर्शन तो अक्षणिकत्व धर्म से विपरीत शुद्धता या नीलत्वादि के
व्यवसाय में (= ग्रहणक्रिया से) व्यग्र रहता है। तो क्या क्षणिकत्व के विषय में वह प्रमाण मान 20 लिया जाय ? नहीं, क्योंकि हमारे मत में वस्तु क्षणिक होने पर भी दर्शन के उत्तरक्षण में क्षणिकत्वरूप
से कोई अध्यवसाय उत्पन्न नहीं होता। तो किस विषय में दर्शन प्रमाण है ? उत्तर है कि नीलादिक्षण को विषय करने के बाद दर्शन नीलादिरूप निश्चायक अध्यवसाय को उत्पन्न करता है। जिस अर्थ के निश्चायक अध्यवसाय को दर्शन उत्पन्न करे उसी अर्थ के विषय में दर्शन प्रमाणभूत माना जाता
है इस नियम के अनुसार, दर्शन को नीलादिरूप विषय में प्रमाण माना जाता है।' - ऐसा जो 25 निवेदन किया है उस में भी विरोध प्राप्त होता है, क्योंकि आप तो अब अक्षणिकत्व के बारे में दर्शन को प्रमाणभूत न मानते हुए भी अक्षणिक सन्तान की सिद्धि का स्वीकार करने लग गये हैं।
* बौद्धमतानुसार अनेकान्तवाद की सिद्धि * ___ बौद्धवादी ने यह जो कह दिया कि – 'दर्शन क्षणिकत्व या अक्षणिकत्व के विषय में अप्रमाण है और नीलादि विषय में प्रमाण है' - इस में तो सिर धुनाते रहने पर भी जैनदर्शन के अनेकान्त 30 वाद का स्वीकार गले में आ पडा । दूसरी बात यह है कि दर्शन नीलादिक्षणग्राही है जब कि अध्यवसाय
दर्शन से विपरीत सन्तानग्राही अध्यवसाय के रूप में उत्पन्न होता है इसलिये दर्शन नीलादि के विषय __ में भी प्रमाण नहीं हो सकता, जैसे मरिचि (किरण) ग्राही दर्शन के बाद उत्पन्न होनेवाले जलाध्यवसाय
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