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सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-२ तदपि तच्छद्मस्थावस्थायां न पुनः केवल्यवस्थायाम्। असंभवद्बाधकप्रमाणत्वं चासिद्धमनुमानस्य तदाहारप्रतिपादकस्य बाधकस्य प्रदर्शितत्वात् (४७६-१) सूत्रसमूहस्य च व्याख्याप्रज्ञप्त्याद्यङ्गेषु तद्बाधकस्योपलम्भात्।
__ किञ्च, सुनिश्चिताऽसम्भवद्बाधकप्रमाणत्वं न प्रमाणलक्षणम् तस्य ज्ञातुमशक्यत्वात्। तथाहि5 बाधकप्रमाणाभावो यद्यन्यतः प्रमाणादवसीयते तर्हि तत्रापि बाधकप्रमाणाभावनिश्चयात् प्रामाण्यनिश्चयः
तदभावनिश्चयश्चान्यतोऽबाधितप्रमाणाद् इत्यनवस्थाप्रसक्तिः। अथ बाधानुपलम्भाद् बाधकाभावनिश्चयः। न, उत्पत्स्यमानबाधकेऽपि बाधकोत्पत्तेः प्राग् बाधानुपलब्धिसम्भवाद् न बाधका(?धा)नुपलम्भाद् बाधा(?धका)भावनिश्चयः। न चाऽनिश्चितलक्षणं प्रमाणं प्रमेयव्यवस्थानिबन्धनम् अतिप्रसङ्गात्। अथ
संवादादसंभवद्बाधकप्रमाणत्वनिश्चयः - तर्हि संवादित्वमेव प्रमाणलक्षणमभ्युपगमार्ह किमबाधितत्वलक्षण10 एक वर्ष तक उपवास) का ऋषभदेवचरित्र में सूचक जो सूत्र है वह भी उन की छद्मस्थावस्थाकाल
संबन्धी है न कि केवलीअवस्था संबन्धी। अत एव दिगम्बरोक्त अनुमान में बाधक प्रमाण के असंभव का कथन भी असिद्ध है क्योंकि केवलि अवस्था में कवलाहारप्रतिपादक कल्पसूत्रादि का बाधकसूत्र (४७६११) दिखाया जा चुका है। भगवती व्याख्याप्रज्ञप्ति आदि अंगशास्त्रों में दिगम्बरानुमानबाधक सूत्रसमूह
की स्पष्ट उपलब्धि होती है। (भगवतीसूत्र शतक-२, उद्देश-२, के स्कन्दकतापसाधिकार में भगवान सर्वज्ञ 15 महावीर स्वामी को 'वियइभोती' इस विशेषण के द्वारा नित्यभोजी बताया गया है। जैसे - 'तेणं कालेणं तेणं समयेणं समणे भगवं महावीरे वियडभोती या वि होत्था।')
[ सुनिश्चित बाधकप्रमाण के असंभव की समीक्षा ] यह भी विमर्श जरूरी है कि सुनिश्चित बाधक प्रमाण का असंभव प्रमाणलक्षण हो सकता है ?
तथाविध असंभव को प्रमाणभूत कहा जा सकता है ? हम कहते हैं नहीं। कारण, वैसे असम्भव 20 का ज्ञान अशक्य है। कारण है अनवस्था :- बाधक प्रमाण के अभाव का जिस प्रमाण से बोध होगा
उस प्रमाण में प्रामाण्य का निश्चायक अन्य बाधकप्रमाणाभाव ढूंढना पडेगा, उस में भी प्रामाण्य का निश्चयकारक अन्य अबाधितप्रमाण ढूंढना होगा। इस सीलसीले का अन्त नहीं आयेगा। यदि बाध की अनुपलब्धि से ही प्रथम बाधकप्रमाणाभाव का निर्णय मानेंगे तो वह भी संभव नहीं, क्योंकि भावि
में जहाँ बाधकोत्पत्ति निश्चित है वहाँ बाधकोत्पत्ति के पहले बाध की अनुपलब्धि तो हो सकती है 25 किन्तु बाधकाभाव का निश्चय शक्य नहीं, कदाचित् कर लिया जाय तो भी अप्रमाण ठहरेगा। अतः
बाधानुपलब्धि से बाध के अभाव का निश्चय असम्भव है। यदि कह दे कि अनिश्चित ही बाधकाभाव को प्रमाण हो जाने दो - तो वह नहीं बन सकता। जिस प्रमाण का लक्षण यानी स्वरूप (अर्थात् प्रामाण्य) स्वयं अनिश्चित है उस से प्रमेय की व्यवस्था नहीं हो सकती, अन्यथा भ्रान्त प्रतीतियों से भी प्रमेय की व्यवस्था का अतिप्रसंग आ पडेगा।
[संवादित्व ही प्रमाण का लक्षण उचित ] यदि संवाद से बाधक प्रमाण के असम्भव का निश्चय किया जाय तो संवादित्व को ही प्रमाण का लक्षण स्वीकारना चाहिये फिर बाधकप्रमाणाभाव का लक्षण ढूंढने की जरूर क्या ? यह भी जान लो कि
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