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खण्ड-४, गाथा-१५, केवलिकवलाहारविमर्श तत एव सर्वज्ञवन्निरावरणास्ते, सोऽपि वा सावरण: तत एव, एकज्ञानिनो वा ते सोऽपि वा चतुर्ज्ञानी स्यात्।
[ केवलिनि कवलाहारनिषेधः - दिगम्बरमतम् ] अत एव छद्मस्थे भुजिक्रियादर्शनात् केवलिनि तद्विजातीये भुजिक्रियाकल्पना न युक्ता, अन्यथा चतु नित्वाऽकेवलित्व-संसारित्वादयोऽपि तत्र स्युः। न देहित्वं तद्भुक्तिकारणं तथाभूतशक्त्यायुष्कर्मणो: 5 तद्धेतुत्वाद् एकवैकल्ये तदभावात्। औदारिकव्यपदेशोऽप्युदारत्वाद्, न भुक्तेः । यदपि-एकेन्द्रियादीनामयोगिपर्यन्तानामाहारिणां सूत्रोपदेशात् केवलिन: कवलाहारित्वं केचित् प्रतिपन्नाः तदपि सूत्रार्थाऽपरिज्ञानात्, तत्र टेकेन्द्रियादिभिः सह भगवतो निर्देशाद् निरन्तराहारोपदेशाच्च शरीरप्रायोग्यपुद्गलग्रहणमाहारत्वेन विवक्षितम्। अन्यथा क्षणत्रयमात्रमपहाय समुद्घातावस्थायां निरन्तराहारो भगवांस्तेनाहारेण भवेत् । यदपि'यथासंभव-माहारव्यवस्थिते सह निर्देशेऽपि कवलाहार एव केवलिनो व्यवस्थाप्यते युक्त्या, अन्यथा 10 से केवली में भी वह प्रसक्त होगी क्योंकि वह भी क्रमोपयोगी है। अथवा - केवली में क्रमोपयोग के साथ जैसे एक ही (केवल) ज्ञान होता है वैसे छद्मस्थों में भी एक ही ज्ञान प्रसक्त होगा। अथवा छद्मस्थ में क्रमोपयोग के साथ चार ज्ञान होते हैं वैसे केवली में भी चार ज्ञान प्रसक्त होंगे। इस प्रकार छद्मस्थ में जो होता है उस का केवली में होना अनिवार्य नहीं - इस तथ्य की पुष्टि कर के दिगम्बर अब केवली में कवलाहार के निषेधवाद का निरूपण करता है -
15 [ केवली में कवलाहारनिषेध की युक्तियाँ - दिगम्बर ] दिगम्बर :- यही कारण है - छद्मस्थ में भोजनक्रिया को देख कर केवली प्रभु में भी भोजनक्रिया की (कवलाहार की) कल्पना करना अनुचित है। अन्यथा, केवली में चार ज्ञान, अकेवलित्व, संसारित्व आदि की भी कल्पना प्रसक्त होगी। केवली में कवलाहारसाधक कोई कारण ही नहीं है। शरीरित्व है लेकिन वह भोजन का आपादक नहीं है। अथवा शरीरित्व केवलीगत भूक्तिक्रियाकारणक नहीं है, 20 (बहुव्रीहिसमास लेना)। देहधारण शक्ति और आयुष्यकर्म इन दोनों के संयोजन से ही भोजन या शरीरधारण होता है, केवलि में यदि इन में से एक का भी अभाव होगा तो जरूर भोजन या देहधारण का विरह होगा। मतलब कि भोजन से ही देहधारण होता है ऐसा प्रमाणित नहीं है। ‘भोजन के प्रभाव से ही 'औदारिक' ऐसी केवली देह की संज्ञा संगत होगी' – इस में भी तथ्य नहीं है क्योंकि उदार (अत्यन्त मनोहर) पुद्गलों के प्रभाव से ही केवली शरीर को 'औदारिक' संज्ञा प्राप्त है। 25
[ आहारी सूचक सूत्र लोमाहार का विधायक - दिगम्बर ] जो लोग ऐसा मान बैठे हैं कि - सूत्र का यह विधान है कि 'एकेन्द्रिय से ले कर अयोगि केवली पर्यन्त सब ‘आहारी' होते हैं, इस लिये केवली भी कवलाहारी है - यह भी सूत्र के अर्थ के अज्ञान का सूचक है। उक्त सूत्र में तो एकेन्द्रियों आदि के साथ साथ जो केवली का भी निर्देश सूचित है उसी से, तथा उस सूत्र में निरन्तर आहार का सूचन है, उसी से यह फलित होता है 30 कि वहाँ कवलाहार की बात नहीं है – (एकेन्द्रियों को कवलाहार नहीं होता) किन्तु वहाँ शरीरनिर्माणहेतु पुद्गलों का ग्रहण ही 'आहार' रूप से अपेक्षित है। यदि यहाँ कवलाहार की विवक्षा होती तो केवली
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