SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 456
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खण्ड - ४, गाथा - १ कतोऽन्यप्रतिपत्तावतिप्रसङ्गः । न, अविनाभूतादन्यतोऽन्यप्रतिपत्त्यभ्युपगमात् । अथ प्रतिबन्धमन्तरेणान्यस्यान्याs विनाभाव एव कुतः ? ननु प्रतिबन्धोऽप्यपरप्रतिबन्धमन्तरेणान्यस्यान्येन कुतः ? अथ प्रतिबन्धोऽपि न वास्तवः प्रतिबद्धयोरन्य: किन्तु कारणान्तरमपरस्य कार्याभिमतस्य भावो वस्तुस्वरूपमेव । तच्च पूर्वोत्तरवस्तुस्वरूपग्राहिप्रत्यक्षानुपलम्भाभ्यां निश्चीयते, तन्निश्चयनमेव कार्य-कारणभावप्रतिबन्धनिश्चयनम्। नन्वेवं प्रत्यक्षानुपलम्भाभ्यामन्येनान्यस्याविनाभावित्वनिश्चयेऽपि न दोषः । अथैकदान्येनान्यस्याविनाभावित्वदर्शनेऽपि सर्वदा सर्वत्रानयोरेवमेव भावः इति न दर्शनाऽदर्शनाभ्यां निश्चेतुं शक्यम् । प्रतिबन्धग्रहणे तु नायं दोषः, कर्पूरोर्णादीन्धनस्वभावानुकारिधूमस्वरूपग्राहिणा विशिष्टाध्यक्षेण सकृदपि प्रवृत्तेनाग्निधूमयोः कार्य-कारणभावनिश्चयात् 'सर्वदाऽनग्निव्यावृत्ताग्निजन्योऽधूमव्यावृत्तो धूमः' इति निश्चीयते। अन्यथा अन्यदैकदाप्यग्नेर्धूमस्योत्पादो न भवेत्, अहेतोः सकृदप्यभावात् भावे वा निर्हेतुकताप्रसक्तेः । तदुक्तं कार्यं धूमो हुतभुजः कार्यधर्मानुवृत्तित:' (प्र०वा०३-३४) इत्यादि । अयुक्तमेतत्- परपक्षे 10 उत्तर :- नहीं, अविनाभूत एक भाव ( रसादि) से अन्य भाव (रूपादि) की प्रतीति क्यों नहीं हो सकती ? ( मतलब, तथाविध रूपादि के अविनाभावी तथाविध रसादि है इसीलिये रसादि से रूपादि की प्रतीति ( अनुमान) हो सकती है। हिमाचल विन्ध्याचल का अविनाभावि कहां है ? ) शंका :- यही तो हमारा प्रश्न है कि तादात्म्यादि प्रतिबन्ध के विना एक ( रसादि) का दूसरे (रूपादि) के साथ अविनाभाव कहाँ से होगा ? - 15 उत्तर :- अरे वाह ! हम पूछते हैं कि तादात्म्यादि अन्य प्रतिबन्ध के विना एक का दूसरे के साथ प्रथम तादात्म्यादि प्रतिबन्ध भी कहाँ से होगा ? शंका :- वास्तव में तादात्म्यादि प्रतिबन्ध कोई प्रतिबद्धों से पृथक् चीज नहीं है जिस से कि उस के लिये अन्य अन्य तादात्म्यादि प्रतिबन्ध ढूँढना पडे । वह तो कार्यरूप से इष्ट अन्य भाव का एक कारणविशेष ही है जो कि मुख्य कारणवस्तु का ही स्वरूप है । उस का निश्चय होता है 20 पूर्वोत्तरकालीनवस्तुस्वरूपग्राहक प्रत्यक्ष और अनुपलम्भ से यह जो निश्चय है वही कार्य-कारणभावात्मक प्रतिबन्ध का निश्चय माना गया है। अतः अन्य... अन्य ... प्रतिबन्ध के विना मूल प्रतिबन्ध कहाँ से यह प्रश्न ही नहीं रहता । आया ४३७ Jain Educationa International उत्तर :- अरे वाह ! तब तो हमारे मत में भी प्रतिबन्ध के विना एक का दूसरे के साथ अविनाभाव निश्चय कहाँ से आया यह प्रश्न भी निरवकाश है क्योंकि प्रत्यक्ष - अनुपलम्भ से एक 25 का दूसरे से अविनाभाव का निश्चय सुलभ होने से कोई दोष नहीं है। [ तादात्म्यादि के विना प्रतिबन्धाभाव की शंका का समाधान ] शंका :- एकबार एक चीज का दूसरी वस्तु के साथ अविनाभाव देख लिया, फिर भी सर्वत्र सर्व काल में उन का ऐसा ही सम्बन्ध है इस प्रकार का निश्चय, दर्शन और अदर्शन ( अन्वयव्यतिरेक) के बल से करना शक्य नहीं है। हाँ, यदि तादात्म्यादि प्रतिबन्ध की उपलब्धि हो जाय 30 तो उक्त दोष नहीं रहेगा। कपूर, ऊर्णादि इन्धन के स्वभाव की अनुवृत्तिकारक धूम का जो स्वरूप है उस को ग्रहण करने वाला एक बार भी विशिष्ट प्रत्यक्ष प्रवृत्त हो जाय तो अग्नि और धूम के 4. 'स भवंस्तदभावेऽपि हेतुमत्तां विलङ्घयेत् ।।' इत्युत्तरार्द्धं प्रमाणवार्त्तिके । — 5 For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003804
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy