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________________ खण्ड-४, गाथा-१ ४२९ नन्वेवमपि 'श्व उदेष्यति सविता अद्यतनादित्योदयात्' ‘जाता समुद्रवृद्धिः शशाङ्कोदयदर्शनात्' इत्यादिप्रयोगेषु हेतोः पक्षधर्मत्वाभावेऽपि गमकत्वोपलब्धेर्न पक्षधर्मत्वं तल्लक्षणम्। अथात्रापि कालस्य देशस्य वा तावत: पक्षत्वमिति पक्षधर्मता। न, कालस्याकाशस्य च पक्षत्वेन सौगतस्यानिष्टेः। अथापि भूतसंक्षोभादिलक्षणः कालः आकाशं वा पक्षत्वेनाभ्युपगम्यते एवेति नापक्षधर्मता। न, लोकस्य साध्यान्यथानुपपन्नहेतुप्रदर्शनमात्रादेव पक्षधर्मत्वाद्यनुस्मरणमन्तरेणापि साध्यप्रतिपत्तिदर्शनात्। त्रैलक्षण्यस्य तत्र सतो- 5 ऽप्यकिंचित्करत्वात्। न च सौगताभ्युपगमेन हेतोः पक्षधर्मता सम्भवति सामान्यस्याऽवस्तुतयाऽभ्युपगतस्य हेतुत्वे शशशृंगादेरिव पक्षधर्मताऽसम्भवात् । स्वलक्षणस्य च हेतुत्वे पक्ष एव हेतुरिति नैतद्धर्मो हेतुः, अभेदे धर्मिधर्मभावस्यानुपपत्तेः से सपक्ष भी बन गया, फिर हेतु में सपक्षवृत्तित्व क्यों नहीं होगा ? तात्पर्य, जहाँ उक्त व्याख्यावाला व्यतिरेक होगा वहाँ उक्त व्याख्यावाला अन्वय भी अवश्य होगा। जहाँ अन्वय होगा वहाँ व्यतिरेक 10 भी अवश्य होगा। सारांश, एक के भी अभाव में दूसरा नहीं रह सकता। अतः हेतु का त्रैलक्षण्य युक्तिसंगत ही है। [ पक्षधर्मत्व में हेतुलक्षणत्व का निरसन - उत्तर ] उत्तर :- पक्षधर्मत्व हेतु का लक्षण नहीं हो सकता। कारण :- आज सूर्योदय हुआ है तो कल भी सूर्योदय होगा - यहाँ आज का सूर्योदय हेतु है और साध्य सूर्योदय अग्रिम दिन में है तो हेतु 15 पक्षवृत्ति कैसे हुआ ? दूसरा भी देखो - समुद्र में ज्वार आयी हुई रहेगी, क्योंकि चन्द्र का उदय दिखता है। इस प्रयोग में हेतु ज्वार समुद्र में है चन्द्रोदय तो पूर्वदिशा में है तो पक्षवृत्तित्व कहाँ है ? इन प्रयोगों में तो हेतु में पक्षधर्मता के विरह में भी साध्यगमकत्व देखा गया है। ___शंका :- दोनों प्रयोग में, पहले में दिनद्वयव्यापी काल को पक्ष बना लो, दूसरे में समुद्रदेश से लेकर चन्द्रोदय देश तक व्यापी आकाश को पक्ष कर दो, फिर हेतु में पक्षधर्मता क्यों नहीं होगी ? 20 उत्तर :- अरे, सौगत (= बौद्ध) मत में काल और आकाश द्रव्य है ही कहाँ ? (काल तो क्षणसन्तान है) आज और कल की क्षणपरम्परा एक द्रव्य कहाँ है जिस से कि वह पक्ष मान लिया जाय ? (वैसे ही आकाश तो तत् तत् स्वलक्षण ही है उस से भिन्न नहीं है, वह भी समुद्र के स्वलक्षण से भिन्न है एवं ऊर्ध्वदेश के स्वलक्षण से भिन्न है फिर एक आकाश भी कहाँ है जो पक्ष बन सके ?) शंका :- फिर भी भूतसंक्षोभ यानी भूतचतुष्ट्य समुदाय रूप काल और आकाश किसी तरह 25 मान लेंगे, उन को पक्ष बना देंगे - फिर पक्षधर्मता हो जायेगी ! उत्तर :- नहीं, ऐसे भूत समुदायरूप काल या आकाश का भान या स्मरण किये विना भी आम जनता को ‘हेतु साध्य के विना अनुपपद्यमान है' - ऐसा दिखाई देने मात्र से ही साध्य का बोध हो जाता है, अतः यथाकथंचित् वहाँ त्रैलक्षण्य का मेल कर लेने पर भी वह निरर्थक व्यायाम रहेगा। [बौद्धमत से भी हेतु में पक्षधर्मता की असंगति ] 30 बौद्धमत में तो हेतु में पक्षधर्मता का संभव ही नहीं है। आपके मत में स्वलक्षण एवं सामान्यलक्षण दो ही पदार्थ है। उन में से सामान्य को तो आप अवस्तु मानते हैं अतः उस को हेतु नहीं किया Jain Educationa International www.jainelibrary.org For Personal and Private Use Only
SR No.003804
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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