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________________ खण्ड-४, गाथा-१ ४२७ क्षणक्षयित्वेन व्याप्तिसिद्धिः, तत्रापि बाधकप्रमाणबलादेव निरात्मकाद् घटादेरविचलितस्वरूपादात्मनश्च प्राणादीनां निवृत्तेः सात्मकत्वेन तेषां व्याप्तिसिद्धिः किं नाभ्युपगम्यते ? अथैवमपि स्वरसनिरन्वयविनश्वरबुद्धिमात्रजन्यत्वात् प्राणादेर्बुद्धिसन्तानेन व्याप्तिप्रसक्तिः। असदेतत् - बुद्धिक्षणस्य अप्राप्य स्वकार्यकालं निवृत्तेरपरबुद्धिक्षणस्य तेन उत्पत्तेरसम्भवात् सन्तानव्यावृत्तेः कुतस्तत्र प्राणादेवृत्तिः ? सन्तानसद्भावेऽपि निरंशस्वभावस्य शक्तिनानात्वमन्तरेण कार्यनानात्वाऽसम्भवात् कुतश्चित्त- 5 क्षणान्तरजनकः सन् प्राणादेरुपकारक: स्यात् ? अथ कारणशक्तिभेदाभावेऽपि कार्याण्येव भिद्यन्ते कथं तक्षणिकतायामर्थक्रियाविरोधः सिध्येत् क्रमयोगपद्याभ्यामर्थक्रियाभावात्, तदभावो वा युक्तिसङ्गतः स्यात् ? नित्यस्य चाऽऽत्मनोऽसम्भवे कथं तेन सात्मकत्वं घटादिषु सन्दिग्धं येन निरात्मकाद् घटादेः प्राणादिमत्त्वादेः उत्तर :- अरे ! ऐसे तो सत्त्व हेतु में क्षणभंगुरता की व्याप्ति भी कैसे सिद्ध होगी और उस के बल से ध्वनि में भी क्षणिकतासिद्धि कैसे होगी ? ___ 10 शंका :- क्षणिकत्व साधक प्रयोग में व्यतिरेक का संदेह होगा तो वहाँ विपक्षबाधक प्रमाण से उस का निवारण शक्य होने से सत्त्व हेतु में क्षणभंगुरता की व्याप्ति सिद्ध हो जायेगी। उत्तर :- ठीक, उसी तरह यहाँ भी बाधकप्रमाण के बल से, आत्मशून्य घटादि से जैसे प्राणादि की निवृत्ति होती है वैसे अविचलित स्वरूप आत्मा के विरह से जीवन्त देह में प्राणादि की भी निवृत्ति का प्रसंग आयेगा। इस बाधक प्रमाण से, प्राणादिमत्त्व में आत्मसाहचर्य की व्याप्ति निर्विवाद 15 सिद्ध क्यों नहीं होगी ? [प्राणादि में बुद्धिसन्तान से व्याप्ति की शंका का निरसन ] शंका :- प्राणादि को आत्मप्रेरित मानने की जरूर नहीं है, बुद्धिसन्तान जब तक जीवित रहेगा, प्राणादि भी तब तक धबकते रहेंगे। अतः मान सकते हैं कि अपने स्वभाव से ही जो निरन्वयनाश होने वाली बुद्धि है उस बुद्धि मात्र से ही प्राणादि उत्पन्न होते रहते हैं। इस प्रकार प्राणादिमत्त्व की 20 व्याप्ति बुद्धि सन्तान के साथ बैठ जाती है। उत्तर :- शंका गलत है। कारण :- प्राणादिकार्योत्पत्तिक्षण में बुद्धि क्षण का पादप्रवेश ही जब नहीं है, उसकी उत्पत्ति के पहले ही बुद्धिक्षण की ज्योत बुझनेवाली है, उस से नये बुद्धि क्षण की उत्पत्ति की आशा ही जब की नहीं जा सकती, फलतः सन्तान का प्रचलन भी शक्य नहीं रहेगा तो प्राणादि उत्पत्ति की क्या आशा करना ? क्षणभर के लिये मान ले कि सन्तान चलता है, फिर 25 भी वह सावयव या सांश नहीं है एकमात्र निरंशस्वभाव है, उस से एक ओर बुद्धिक्षण की तो दूसरी ओर प्राणादि का, इस प्रकार विचित्र कार्यों का संभव विभिन्न शक्ति के विना जब शक्य नहीं है तब, किस चित्तक्षण से किस प्रकार की शक्ति से कौन सा कार्य उत्पन्न होगा - किसे मालूम है ? तो जिस चित्तक्षण में (निरंश होने से) एक मात्र चित्तक्षणान्तरजनन शक्ति ही है उस से प्राणादि को क्या उपकार होगा ? [शक्तिभेद के विना कार्यभेद मानने पर क्षणिकताभंग ] शंका :- कारण में शक्तिभेद न होने पर भी कार्यों का भेद क्यों नहीं हो सकता ? Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003804
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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