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खण्ड-४,
गाथा - १
४२५
यस्मिन् सत्येव यद् भवति यदभावे यन्न भवत्येव कथं न तत् तस्य गमकं भवेत् ? तथा सर्वोऽपि धूमः अग्निमन्तरेण न कदाचित् प्रभवतीति व्याप्तिसाधने नान्वयः संभवति तदसिद्धौ च कुतोऽभिमतप्रदेशे धूमादग्निनिश्चयः ? अतस्त्रिलक्षणपरिकल्पनायां व्याप्तिनिश्चयस्य सर्वत्राऽसंभवात् कार्य-स्वभावहेतुद्वयस्यापि गमकत्वं न स्यात्। तथा 'नास्तीह घटः उपलब्धिलक्षणप्राप्तस्यानुपलब्धेः' इत्यत्रापि दृष्टान्ताभावान्नान्वयः सिद्धः । न च शशशृंगादिको दृष्टान्त: समस्तीति वक्तव्यम् तत्रापि दृष्टान्तान्तरकल्पनायामनवस्थाप्रसक्तेः । 5 अथ शशशृंगादावनुपलम्भात् प्रवर्त्तिताभावव्यवहारोऽपि मूढः अनुपलभ्यमानेऽपि प्रदेशविशेषे घटादी यस्तं न प्रवर्त्तयति स निमित्तदर्शनात् तत्र प्रवर्त्यते इति भवत्येव शशशृंगादिरभावव्यवहारे साध्येऽनवस्थादोषविकलो दृष्टान्तः, तत्रानुपलम्भेनाव्यवहारस्य प्रवृत्ताऽ सद्व्यवहारशशशृंगादिदृष्टान्तबलात् प्रसाधनात् प्रदेशविशेषे घटाभावस्य त्वध्यक्षसिद्धत्वात् । असदेतत् - यतो घटाभावसिद्धिर्घटाभावनिर्णयः उच्यते स चेत् सिद्धः अभावव्यवहारोऽपि सिद्ध एव अभावनिर्णयव्यतिरेकेणाभावव्यवहाराऽयोगात् । न च प्रदेशे घटाभावं 10 निश्चिन्वानोऽपि तच्छब्दादिकं कश्चिन्न प्रवर्त्तयेदित्यनुपलम्भेन प्रवर्त्यत इति वाच्यम्, एवं हि भावं का अस्तित्व हो, जिस के अभाव में जो कभी न रहता हो वह उस ( साध्य) का बोधक होगा ही, क्यों नहीं होगा ? तथा जब व्यापक रूप से कहा जाय कि 'सब कोई धूम अग्नि के विना कभी भी जन्म नहीं लेता' ऐसी व्याप्ति के निश्चय में अन्वय कहाँ से संभव होगा जब कि यहाँ सभी धूम की व्याप्ति गृहीत करना है ? जब यहाँ व्याप्ति अन्वय के द्वारा सिद्ध नहीं है तो इष्ट प्रदेश 15 में धूम के बल से अग्नि का निश्चय कैसे होगा ? सारांश, त्रिलक्षणमय हेतु की कल्पना पकड कर रखेंगे तो व्याप्ति का निश्चय कहीं भी न हो सकेगा। तब चाहे कार्य हेतु हो चाहे स्वभाव हेतु, व्याप्ति निश्चय के विना साध्यगमक कैसे हो पायेगा ? अनुपलब्धि हेतु भी नहीं घटेगा, जैसे कि 'यहाँ घट नहीं हैं, क्योंकि उपलब्धि योग्यता होने पर भी अनुपलब्ध है' इस प्रयोग में दृष्टान्त का विरह होने से अन्वय कहाँ सिद्ध है ? यहाँ असत् शशशृंग का दृष्टान्त नहीं चलेगा क्योंकि उस में भी साध्यसिद्धि 20 करने के लिये नये नये दृष्टान्त की अन्तहीन कल्पना करते रहेंगे तो अनवस्था प्रसक्त होगी ।
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[ अभावव्यवहार के लिये शशशृंग दृष्टान्त के बारे में शंका ]
शंका :- कोई मूढ ऐसा है जो शशशृंग का उपलम्भ न होने पर शशशृंग के बारे में अभाव का व्यवहार करता रहता है, किन्तु प्रदेशविशेष में घट का उपलम्भ न होने पर भी घटादि के बारे में अभावव्यवहार करना नहीं जानता, उस को अनुपलम्भरूप निमित्त को दिखा कर जब अभावव्यवहार 25 के लिये प्रेरित किया जाता है तब उस अभावव्यवहारप्रवर्त्तन के लिये शशशृंगादि को दृष्टान्तरूप में प्रस्तुत कर सकते हैं इतना ही पर्याप्त है, फिर नये नये दृष्टान्त की जरूर न रहने से अनवस्था दोष निरवकाश । वहाँ जो शशशृंग के बारे में 'असत् 'पन का व्यवहार प्रवर्त्तता है उस को दृष्टान्त बनाकर उस के बल से घट के बारे में भी अनुपलब्धि द्वारा हैं न कि घटाभाव का प्रसाधन, क्योंकि स्थानविशेष में घटाभाव [ अभावप्रत्यक्ष से ही अभावव्यवहारसिद्धि उत्तर :- यह गलत बात है । कारण :- घटाभाव का प्रसाधन यानी घटाभाव का निश्चय । यदि
समाधान ]
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अभाव व्यवहार का प्रसाधन करते
तो प्रत्यक्ष से सिद्ध ही है।
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