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सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-२ सद्गुणद्रव्यरूपेण रूपादेरेकतेष्यते । स्वरूपापेक्षया चैषां परस्परं विभिन्नता।। (श्लो वा अभाव.श्लो०२४)
इति वचनात् । एवं चात्यन्तिकस्य क्वचिदपि भेदस्याभावादभावरूपता भावानामन्योन्यं न सिद्ध्येत् इत्यन्योन्याभावाभाव एव ।
एवं कारणे कार्याभावः कार्यात् कारणाच्च भेदात् तद्द्वयादपि व्यावर्त्तमानोऽपरापराभाववशाद् 5 व्यावर्त्तत इत्युभयतोऽनवस्थालतां निरवसानामातनोति, तथा कार्ये कारणाभावश्च । अथ कार्यादीनामभाव:
कारणाद्यात्मका स्वभावेनैव कार्यादिरूपविकलतया भिद्यते ततो नान्याभाववशाद, एवं कार्यात्मा कारणादीनामभावोऽपि । नन्वेवं कारणादयोऽपि कार्यादिभ्यः स्वभावेनैव भेत्स्यन्त इति किमपराभावांशपरिकल्पनया? अत एव ‘कार्यादीनामभावः को भावो यः कारणादि न' ( ) इत्यपि सङ्गतं स्यात् कारणादेरेव स्वरूपस्य
पर्युदासवृत्त्या कार्याधभावशब्दवाच्यत्वात्, तस्य च कारणादिस्वरूपस्याऽभावस्य वस्तूरूपताऽस्माकमिष्टैव । 10 प्रागभावादेश्च कारणादिभावरूपतया कारणादिविभागतो व्यवहारो लोकस्याप्येवं सिद्ध एव । 'अनुवृत्तिव्यावृत्तिबुद्धिग्राह्यत्वात् तत्स्वभावो गवादिवद्' (३९९-३) इत्यत्रापि हेतुरसिद्धः साधनविकलश्च दृष्टान्तः,
'गुणवद् द्रव्य के (आश्रित) रूप में रूपादि में एकत्व मान्य है, किन्तु अपने अपने वस्तुत्व की अपेक्षा उन में परस्पर विभिन्नता है।'
इस प्रकार - आत्यन्तिक भेद की सत्ता कहीं भी न होने से भावों की परस्पर अभावरूपता 15 कहीं भी सिद्ध नहीं हो सकेगी, फलतः अन्योन्याभाव का अस्तित्व ही नहीं रहेगा।
[कार्याभाव कारणाभाव स्वतः व्यावृत्त न मानने पर अनवस्था ] कारण में जो कार्याभाव कहा गया है वह न तो कार्यरूप है, न कारणरूप है, न उभयरूप है, तब इन तीनों से विभिन्न कार्याभाव को स्वतः व्यावत्त नहीं मानेंगे तो अन्य अन्य अभाव के
बल से व्यावृत्त मानना पडेगा, फिर वही अंतहीन अनवस्था रोग लागु होगा। इसी प्रकार कार्य में 20 जो कारणाभाव कहा गया है उस के लिये भी उपरोक्त रोग समझ लेना।
शंका :- कारण में कार्य का और कार्य में कारण का अभाव पृथक् नहीं है, वह कारणादिस्वरूप ही है, वह अन्यअभाव के बल से भिन्नता अनुभव नहीं करते किन्तु स्वभाव से ही कार्यादिस्वरूपवैकल्य के कारण भिन्न माने गये हैं। इसी प्रकार कार्य में कारणादि का अभाव भी समझ लेना।
उत्तर :- अरे ! तब तो कारणादि भी कार्यादि से स्वतोभिन्न बने रहेंगे फिर नये नये (भेदरूप) 25 अभावांश की कल्पना करने की जरूर क्या ? ऐसा मानने पर ही आपने जो श्लो॰वा० में (अभाव श्लो०
८ में) कहा है कि 'कार्यादि का यह कौन सा अभाव है जो कारणादिरूप नहीं है ?' – (३९९१३) वह संगत हो सकेगा। क्योंकि -
[अभाव की वस्तुरूपता की उपपत्ति का सही तरीका ] सच यही है कि कारणादि का स्वरूप ही पर्युदासनञ् से 'कार्यादिअभाव' शब्दवाच्य होता है। 30 उस कारणादिस्वरूप अभाव को हम भी वस्तुरूप ही मानते हैं। प्रागभावादि भी कारणादिभावस्वरूप
ही है इसी लिये उन वस्तुओं में कारण-कार्यादि विभाग से लोकव्यवहार संगत होता है। तथा वह जो श्लो॰वा. (अभाव० श्लो०९) में कहा था (३९९-१५) - अभाव वस्तुरूप है (स्वतन्त्र वस्तु है) क्योंकि अनुवृत्ति-व्यावृत्तिबुद्धिग्राह्य है जैसे गवादि - इस प्रयोग में हेतु असिद्ध है और दृष्टान्त भी
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