SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 391
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७२ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-२ सकलोपसंहारेण व्याप्तिनिश्चयात् । तथाहि - महानसादौ विशिष्टमध्यक्षमग्नि-धूमयोः कार्य-कारणभावग्राहकत्वेन प्रवृत्तं 'सर्वत्रानग्निव्यावृत्तोऽग्निः अधूमव्यावृत्तस्य धूमस्य जनकः' इति व्यवस्थापयति, अन्यथा सकृदप्यग्नेधूमस्योत्पत्तिर्न भवेत् अहेतोः कदाचिदप्युत्पत्तिविरोधात् । तदुक्तम् (प्र.वा०३-३४) - कार्यं धूमो हुतभुजः कार्यधर्मानुवृत्तितः। संभवंस्तदभावेऽपि हेतुसत्तां विलंघयेत् । तथाभावमन्तरेणापि भवन् स्वभावो निःस्वभाव एव स्यात्। तदुक्तम् (प्र०वा०३-३९) - स्वभावेऽप्यविनाभावो भावमात्रानुरोधिनि। तदभावे स्वयंभावस्याभावः स्यादभेदतः।। इति तादात्म्य-तदुत्पत्तिव्यवस्थापकं प्रमाणं सकलोपसंहारेण व्याप्तिव्यवस्थापकमित्युक्तं प्राक् । अथ सर्वोपसंहारेण व्याप्तिग्रहणे अनुमानस्याऽप्रामाण्यं भवेत् व्याप्तिग्राहकप्रमाणप्रतिपन्नार्थविषयत्वेन 10 स्मृतिरूपत्वात्। तदंशव्याप्तिसामर्थ्येन च हेतोः स्वसाध्यप्रतिपादकत्वं न पक्षे सत्तामात्रतः, तत्स्थस्य रासभादेरपि साध्यप्रतिपादकत्वप्रसक्तेस्ततस्तदंशव्याप्तिवचनेनैव गतत्वात् पक्षधर्म इति हेतोः पृथग् लक्षणं द्वारा व्याप्ति का ग्रहण = निश्चय किया जा सकता है। कैसे यह देखिये - [कार्य-कारणभावग्राहक विशिष्ट प्रत्यक्ष से व्याप्तिग्रह ] भोजनगृह में अग्नि-धूम उभय का ग्राहक विशिष्ट प्रत्यक्ष जब उदित होता है तब कार्य-कारणभाव 15 का भी ग्रहण कर लेता है। वही प्रत्यक्ष तब यह निश्चित कर देता है कि अनग्निव्यावृत्त अग्नि अधूमव्यावृत्त धूम का उत्पादक है। यदि यह निश्चय असत्य है तो एक बार भी अग्नि से धूम की उत्पत्ति न होनी चाहिये। अहेतुभूत कारणाभास से कभी कार्योत्पत्ति मानेंगे तो विरोध दोष होगा। प्रमाणवार्तिक (३-३४) में कहा है - ___“धूम अग्नि का कार्य है क्योंकि (अग्नि के) कार्यधर्मों का अनुसरण करता है। अग्नि के विना 20 भी यदि धूमोत्पाद होगा तो (अग्नि में) हेतुत्व का उल्लंघन (विघटन) हो जायेगा।" हेतुभाव के विना भी यदि धूम अग्नि के प्रति अविनाभावस्वभाववाला होगा तो वह निःस्वभाव यानी जूठा (जाली) होगा। प्रमाणवार्तिक में कहा है (३-३९) भावमात्र से अनुरुद्ध (भाव का) स्वभाव होने पर भी अविनाभाव माना जायेगा, तब भाव खुद अपना स्वभाव अभेद के कारण खो बैठेगा। 25 निष्कर्ष :- जो प्रमाण तादात्म्य-तदुत्पत्ति का निश्चायक होता है वही सर्वोपसंहार से व्याप्ति का भी निश्चायक होता है। यह पहले भी कहा जा चुका है। [ अनुमानप्रामाण्य एवं पक्षधर्मता के लोप की शंका ] पक्षधर्मता के ऊपर दोष की शंका की जा रही है - शंका :- बौद्धने जो सर्वोपसंहार के द्वारा व्याप्तिग्राहक प्रमाण का निर्देश दिखाया वह सम्भव नहीं, 30 क्योंकि यहाँ अनुमान के अप्रामाण्य की आपत्ति आयेगी। सर्वोपसंहार से व्याप्तिग्राहकप्रमाण में, प्रस्तावित अनुमान का साध्यधर्म भी पूर्वगृहीत हो गया है। पुनः अनुमान उस का ग्रहण करेगा तो वह गृहीतग्राही होने से अनुमानरूप नहीं किन्तु स्मृतिस्वरूप हो गया। दूसरी बात, कोई भी हेतु धर्मी के अंशभूत साध्यधर्म Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003804
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy