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सन्मतितर्कप्रकरण - काण्ड - २
कारणभावविशेष एवेति तदभावे तस्याप्यभाव इति नाकार्यकारणभूताद् रूपादेस्तत्समानकालस्य रसस्यानुमानं सामान्यतोदृष्टस्योदाहरणं युक्तिसङ्गतम् ।
यदपि वतेः प्रयोगमाश्रित्य पूर्ववदनुमानं व्याख्यातम् (३६०-८ ) तत्रापि दृष्टान्तधर्मिणि साध्यसाधनयो: प्रत्यक्षेण प्रतिबन्धग्रहणेऽनुमानस्योत्थानं न स्यात्, साध्यधर्मिणि हेतोः साध्यधर्मेणाऽविनाभूतत्वा5 S ग्रहणात् । न च दृष्टान्तधर्मिणि हेतोः साध्याऽविनाभूतत्वग्रहणमात्रादेव साध्यधर्मिणि साध्यप्रतिपत्तिः, अन्यथा 'लोहलेख्यं वज्रं पार्थिवत्वात् काष्ठवत्' इत्यत्रापि साध्यप्रतिपत्तिर्भवेत्, दृष्टान्तधर्मिणि पार्थिवत्वस्य लोहलेख्यतयाऽध्यक्षतः प्रतिपत्तेः । न चाध्यक्षबाधनादत्र न साध्यप्रतिपत्तिः बाधाऽविनाभावयोर्विरोधात् अविनाभावयुक्ते अध्यक्ष - बाधाऽयोगात् । न चाऽबाधितत्वाऽसत्प्रतिपक्षितत्वरूपद्वययोगात् त्रिलक्षणस्य हेतोरविनाभावपरिसमाप्तिरिति त्रैलक्षण्येऽपि पार्थिवत्वस्याऽबाधितत्वरूपान्तराभावाद् न साध्याविनाभाव 10 हेतु में तो आप गमकत्व मानते नहीं है। यदि अव्यभिचार का मूल एकसामग्रीजन्यत्व को माना जा तो तत्त्वतः वह कार्य-कारणभावविशेषरूप ही फलित होगा । एक सामग्री यानी रूप और रस के उत्पादक समान उपादान कारण । रूपोत्पादक उपादान कारण, और उस का कार्य रस - - इस तरह आखिर रूप और रस में रूपकारणजन्यत्व के जरिये कारण- कार्यभाव ही अव्यभिचार का मूल सिद्ध हुआ । उस के विरह में अव्यभिचार भी कैसे होगा ? सारांश, न कारण हो न कार्य हो ऐसे रूपादि से स्वसमानकालीन 15 रस का अनुमान, यह सामान्यतोदृष्ट के उदाहरण रूप में प्रस्तुत करना युक्तिसंगत नहीं है। [ पार्थिवत्व हेतु से लोहलेख्यत्व - अनुमान की प्रसक्ति ]
नैयायिकने जो वत् प्रत्यय के प्रयोग का आशरा ले कर पूर्ववत् अनुमान की व्याख्या दर्शायी
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( ३६० - २५ ) है फिर भी वह अनुमान सम्भव नहीं होगा। दो बात है १ दृष्टान्तधर्मी में अगर साध्य-साधन का प्रत्यक्ष से प्रतिबन्ध ( व्याप्ति) ग्रहण करे, तो अनुमान नहीं होगा क्योंकि वहाँ साध्य20 साधन दोनों प्रत्यक्ष है । २- साधनधर्मी में भी अनुमान नहीं होगा क्योंकि साध्यधर्मी में, हेतु का
साध्य के साथ अविनाभाव गृहीत नहीं है। ऐसा तो शक्य नहीं है कि दृष्टान्तधर्मी में हेतु का साध्य के साथ अविनाभाव ग्रहण कर लिया इतने मात्र से साध्यधर्मी में ( अर्थतः साधनधर्मी) भी साध्य का अवबोध हो जाय । यदि शक्य होगा, तो 'वज्र लोह से लेख्य है (खुरेदा जा सकता है) क्योंकि पार्थिव है जैसे काष्ठ' इस अनुमान भी साध्य का सच्चा बोध हो बैठेगा, क्योंकि दृष्टान्त धर्मी 25 काष्ठ में प्रत्यक्ष से लोहलेख्यत्व की प्रतीति होती । यदि कहें 'यहाँ तो प्रत्यक्ष बाध होने साध्यबोध नहीं होगा ।' तो यह कथन, युक्त नहीं है क्योंकि बाध हो वहाँ विरोध के कारण अविनाभाव नहीं होता । यदि यहाँ अविनाभाव है तो वहाँ विरोध होने से प्रत्यक्षबाध नहीं हो सकता । शंका :हेतु के अविनाभाव के अन्तर्गत सिर्फ पक्षसत्त्वादि ही पर्याप्त नहीं है, अबाधितत्व और असत्प्रतिपक्षत्व ये दो धर्मों का योग होने पर ही त्रिलक्षण हेतु का अविनाभाव पर्याप्त = पूर्ण स्वरूप 30 होता है । प्रस्तुत में पार्थिवत्व हेतु का पक्षसत्त्वादि त्रिलक्षण होने पर भी अन्य चौथा अबाधितत्व रूप न होने से, हेतु में साध्य का अविनाभाव नहीं है। अतः सत्य अनुमिति नहीं होगी । उत्तर :- नहीं । जब तक हेतु में अविसंवादित्व का बोध नहीं होगा तब तक अबाधितत्व की
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