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खण्ड-४, गाथा - १
३४३
नालिकेरद्वीपवासिनो विशिष्टदेशेऽग्निप्रतिपत्तिरुपजायते न च तस्या अनुमानफलत्वम्, शाब्दत्वेन व्यवस्थापनात्
तन्निवृत्तयेऽव्यपदेश्यपदानुवृत्तिः ।
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तथाप्युपमानेऽतिप्रसङ्गः, गृहीतातिदेशवाक्यस्य पुंसः सादृश्यज्ञानं वाक्यार्थानुस्मरणसहायमव्यपदेश्यादिविशेषणत्रयविशिष्टं संज्ञासंज्ञिसम्बन्धज्ञानं तत्पूर्वकपूर्वकं जनयदपि नानुमानम् तत्फलस्याऽव्यपदेश्यत्वं च श्रूयमाणवाक्याऽजनितत्वात् । तथाऽनुमानादिपूर्वकाणामसङ्ग्रहः • इति अव्याप्त्यतिव्याप्ती न निवर्त्तेते, 5 ततस्तन्निवृत्तये विग्रद्वयाश्रयणम् - 'तानि ते च पूर्वं यस्य' तत् तत्पूर्वकम् । 'तानि' इति विग्रहविशेषाश्रयणेन सर्वप्रमाणपूर्वकत्वमनुमानस्य लभ्यते । न च तेषां पूर्वमप्रकृतत्वात् कथं सर्वनाम्ना परामर्श इति प्रेर्यम्, यतः साक्षादप्रकृतत्वेऽपि प्रत्यक्षसूत्रे व्यवच्छेद्यत्वेन प्रकृतत्वात् अव्याप्तेरेव निवृत्तिः । अतिव्याप्तेस्तु 'ते पुरुष को जब अग्नि के प्रति अंगुलीनिर्देश कर के यह 'अग्नि' ऐसा वाक्यप्रयोग किया जाता है तब उस पुरुष को अग्नि की प्रतीति होती है वहाँ भी प्रत्यक्षपूर्वकता तो है अनुमानप्रमाणपूर्वकता नहीं 10 है, क्योंकि दोनों स्थल में अग्नि का बोध शाब्दरूप ही होता है उन में अब अनुमानत्व की आपत्ति होगी क्योंकि उक्त सभी लक्षण यहाँ 'अग्नि' ज्ञान ( शाब्द) में घट रहे हैं । इस अतिव्याप्ति को दूर करने के लिये 'अव्यपदेश्य' (शब्द से अनाक्रान्त) पद भी लगाना पडेगा ।
[ उपमान में अतिव्याप्ति और अनुमानादिपूर्वकों में अव्याप्ति ]
इतना होने पर भी उपमान में अतिव्याप्ति प्रसक्त होगी । जिस पुरुषने 'गोसदृश गवय होता 15 है' यह अतिदेशवाक्य सुन लिया है उस पुरुष को गवय में गोसादृश्य का ज्ञान होगा, वह ज्ञान उस पुरुष को 'यह ( गवय) गवयपदवाच्य है' ऐसा जो उपमानस्वरूप संज्ञा-संज्ञिज्ञान उत्पन्न करेगा वह प्रत्यक्षफलपूर्वक है, वाक्यार्थ के पुनः स्मरण की सहायता से हुआ है एवं अव्यभिचारि अव्यपदेश्य आदि तीन विशेषणों से युक्त है । किन्तु वह अनुमानरूप नहीं है । पूर्वश्रुत वाक्य से यह ज्ञान साक्षात् जन्य न होने से उसे 'अव्यपदेश्य' कौन नहीं मानेगा ? उक्त अतिव्याप्तिओं के उपरांत, अनुमानादिपूर्वक 20 होने वाले अनुमानों में 'प्रत्यक्षफलपूर्वकत्व' न होने से अव्याप्ति दोष भी लागु होगा |
[ अतिव्याप्ति - अव्याप्ति का निवारणोपाय ]
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इन सभी दोषों की निवृत्ति के लिये 'तत्पूर्वकम्' समास का द्विविध विग्रह करना पडेगा । १. वे हैं पूर्व जिस के, २- वे ( दो प्रत्यक्ष ) पूर्व हैं जिस के । 'वे (तानि ) ' ऐसा विशिष्ट विग्रह का आशरा लेने से मात्र प्रत्यक्षपूर्वकत्व नहीं किन्तु 'सर्वप्रमाणपूर्वकत्व' ऐसा अर्थलाभ होगा, अतः अनुमानपूर्वक 25 होने वाले अनुमानों में अव्याप्ति दोष निवृत्त हो जायेगा ।
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प्रश्न :- ‘तत्पूर्वकम्' पद में 'तत्' सर्वनाम से प्रत्यक्ष का परामर्श तो न्याययुक्त है क्योंकि अनुमान सूत्र के पहले प्रत्यक्ष सूत्र पठित है । किन्तु 'सर्वप्रमाण' अपठित है तो तत् का 'तानि' कर के सर्वनाम से सकल प्रमाण का परामर्श क्यों कर होगा ?
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उत्तर :- साक्षात् उन का परामर्श न रहने पर भी प्रत्यक्षेतर प्रमाण वहाँ प्रत्यक्षलक्षण के व्यवच्छेद्य 30 के रूप में प्रत्यक्ष के साथ ही बुद्धि में उपस्थित होने से, उन का भी परामर्श न्याययुक्त है, अतः अव्याप्ति की निवृत्ति शक्य I
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