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________________ खण्ड-४, गाथा-१ तन्नियम्यते' इति चेत् ? अत्र वस्तुस्वभावैरुत्तरं वाच्यम्- नहि कारणानि कार्यजननप्रतिनियमे पर्यनुयोगमर्हन्ति, तत्र तस्य वैफल्यात्। साकारत्वेऽपि चायं पर्यनुयोगः समानः । ___ तथाहि- साकारमपि ज्ञानं किमिति नीलादिकमेव पुरोवर्ति तत्सन्निहितमेव च व्यवस्थापयति ? 'तेनैव तथा तस्य जननादिति चेत् समानमेतन्निराकारत्वेऽपि। किञ्च, चक्षुरादिजन्यं तद्विज्ञानं किमिति चक्षुराद्याकारं न भवति इति पर्यनुयोगे भवतापि 'वस्तुस्वभावैरुत्तरं वाच्यम्' इति वक्तव्यम्; तदस्माभिरभिधीयमानं 5 किमित्यसंगतं भवतः प्रतिभाति । अपि च साकारता विज्ञानस्य किं साकारेण प्रतीयते आहोस्विनिराकारेण ? यदि साकारेण तदा तत्रापि प्रतिपत्तावाकारान्तरपरिकल्पनमित्यनवस्थाप्रसक्तिः । निराकारेण चेद् ? बाह्यार्थस्यापि दिखता है तब उस में असंगति क्या है ?' * चक्षु आदि सामग्री नीलादिविषयता की प्रयोजक * यदि प्रश्न हो कि- ज्ञान आकारमुक्त है तब वह संमुख रहे हुए नीलादि की दिशा में ही प्रवृत्ति 10 कैसे करता है ? क्यों पृष्ठवर्त्ति पीतादि की ओर नहीं ? इस का उत्तर पहले ही कहा है कि चक्षु । आदि सामग्री का यह प्रभाव है कि उस से उत्पन्न निराकार भी ज्ञान नियत विषय नीलादि की ओर ही प्रवृत्त होता है। ऐसा प्रश्न हो कि चक्षु आदि सामग्री उसे नील के साथ ही क्यों नियत करती है - तो इस का उत्तर है वस्तुस्वभाव । हर जगह यही आखरी उत्तर होता है। मिट्टी आदि कारणसामग्री घट को ही क्यों उत्पन्न करती है - वस्त्रादि को क्यों नहीं ? अमुक अमुक कारण अमुक 15 ही कार्य को जन्म देते हैं न कि सर्व कार्य को ऐसा क्यों ? ऐसा प्रश्न उचित नहीं है क्यों कि यह तो स्वभाव है। स्वभाव के प्रति प्रश्न उठाने का कोई फल नहीं होता। स्वभाव के प्रति किये गये हजार प्रश्न भी निरर्थक होते हैं। फिर भी अगर प्रश्न करना ही है तो साकारवाद में भी वैसे ही प्रश्न सिर उठायेंगे। * साकारवाद में नियत व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न * साकारवाद में भी देखिये- साकार ज्ञान चक्षुआदि से संनिहित संमुखवर्ती नीलादि अर्थ को ही क्यों नीलादि के रूप में संस्थापित करता है ? उत्तर में आप यह कहेंगे कि संनिहित पुरोवर्ती नीलादि अर्थ से ही वह नीलाकार ज्ञान सत्ता पाया है इसलिये। ऐसा ही उत्तर निराकारज्ञान पक्ष में भी सरल एवं सुलभ है। यह भी साकारवादी को पूछा जाय कि साकार ज्ञान सिर्फ नीलादि अर्थमात्र से नहीं किन्तु चक्षु आदि से भी उत्पन्न हुआ है - तब क्या कारण है कि वह चक्षुआदि आकार 25 न हो कर नीलादिआकार ही होता है ?- यहाँ साकारवादी का यही उत्तर होगा कि आखिर तो हर एक प्रश्न का वस्तुगत तथास्वभाव से ही समाधान देना पडता है। साकारज्ञान का वैसा ही स्वभाव है कि वह चक्षु आकार न हो कर नीलादि-आकार ही होता है। बन्धु ! तब हमारे निराकार वाद में भी हम कहें कि निराकार ज्ञान का स्वभाव है कि वह आकारशून्य होते हुए भी नीलादि सामग्री से उत्पन्न होने पर नीलादिआकार ही होता है- तो इस में आप को असंगति क्यों भासती है ? 30 * ज्ञान साकारता का ग्रहण साकार/निराकार ज्ञान से ? * साकारवाद में यह भी प्रश्न है कि - विज्ञान में जैसे नील अर्थ अपने समान नीलाकार के ___20 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003804
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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