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सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-२ न संयुक्तसमवायसम्बन्धाभावः । न, इहबुद्ध्या सम्बन्धमात्रसाधने घट-तद्रूपयोः कथंचित्तादात्म्यसम्बन्धाभ्युपगमात् सिद्धसाध्यताप्रसङ्गात् । अथ कथंचित्तादात्म्यसम्बन्धः तद्बुद्धिनिमित्तत्वेन न प्रतिपन्नः इति कथमतोऽसौ साध्यः ? तर्हि समवायेऽपि एतत् समानम् । तथापि ततस्तत्साधनेऽन्यत्र कः प्रद्वेष: ? अथ घट-तद्रूपयोः
कथंचित्तादात्म्यसम्बन्धः विरोधान्नेष्यते- तर्हि भावाभावयोः कथंचित्तादात्म्याभावे समवायादेरसम्भवादसम्बन्धः 5 स्यात्, तथा च अभावेनाक्षाणां संनिकर्षाभावाद् नाऽक्षतस्तत्प्रतिपत्तिः स्यात् ।
___'विशेषण-विशेष्यभावस्य भावाभावयोः सम्बन्धस्य भावाद् नायं दोषः' इति चेत् ? न, भावाभावाभ्यां तस्यानन्तरत्वे तावेव, स एव वा स्यात्। अर्थान्तरत्वे भावाभावयोः सद्भावेऽपि न विशेषणविशेष्यरूपता ताभ्यां तस्याऽसम्बन्धात्। सम्बन्धे वा ताभ्यां तस्याऽपरेण सम्बन्धनिमित्तेन विशेषण
विशेष्यभावेन भवितव्यम्, तस्यापि सम्बन्धनिमित्तेनाऽपरेण तेनेत्यनवस्था भवेत्। तस्मात् कथंचित् 10 नहीं कर सकते। पहले तो आप को सम्बन्धमात्र की ही सिद्धि करनी पडेगी (क्योंकि समवाय तत्पूर्व
कहीं सिद्ध नहीं है।) तो घट और रूप का सम्बन्ध कथंचित् तादात्म्य भी सिद्ध हो सकता है जो कि हमारा इष्ट सिद्ध करनेवाला होने से आप को यहाँ सिद्धसाध्यता दोष लागु होगा। यदि कहें - ‘पहले तो कभी 'यहाँ.' ऐसी बुद्धि के निमित्तरूप में कथंचित तादात्म्य सम्बन्ध प्रसिद्ध नहीं रहा,
फिर यहाँ इस अनुमान का साध्य वह कैसे हो सकता है ?' – समवाय के लिये भी यही बात 15 समान है, वह भी पहले प्रसिद्ध नहीं रहा। फिर भी आप उसी को साध्य बनाना चाहे तो कथंचित्तादात्म्य
के ऊपर आप को प्रद्वेष होने का कारण क्या ? यदि कहें कि - घट एवं उस के रूप में भेद सिद्ध होने से कथंचित्तादात्म्य वहाँ विरोधग्रस्त है इसलिये उस की सिद्धि उक्तानुमान से नहीं हो सकती। - तो भूतल एवं घटाभाव में भी कथंचित्तादात्म्य के अभाव में, एवं समवाय के भी न होने से
(आप को अभाव का सम्बन्ध समवाय मान्य न होने से) सर्वथा सम्बन्धाभाव प्रसक्त होगा; फलतः 20 अभाव के साथ इन्द्रिय का कोई भी सम्बन्ध संगत न होने से, इन्द्रिय द्वारा अभाव का बोध कभी नहीं होगा।
[ भाव-अभाव का वि.वि. भाव सम्बन्ध असंगत 1 नैयायिक :- कथंचित्तादात्म्य नहीं, समवाय भी नहीं, भाव और अभाव का विशेषण-विशेष्यभाव सम्बन्ध जाग्रत होने पर कोई दोष नहीं है। विशेषण-विशेष्यभाव सम्बन्ध से भूतल (विशेष्य) में अभाव 25 (= विशेषण) का भान हो सकता है।
जैन :- नहीं नहीं, पहले यह कहो कि वह सम्बन्ध भाव-अभाव से सर्वथा भिन्न है या अभिन्न ? यदि अभिन्न है तब तो नया कुछ नहीं हुआ, ऐसा कहिये कि सिर्फ भाव-अभाव का ही अस्तित्व है न कि अभिन्न सम्बन्ध का। अथवा उस सम्बन्ध का ही अस्तित्व रहेगा न कि भावाऽभाव का।
यदि कहें कि भाव-अभाव से सम्बन्ध भिन्न है तो भाव-अभाव दोनों रहेगा किन्तु उन से भिन्न सम्बन्ध 30 का (यानी विशेषण-विशेष्य भाव का) सम्बन्ध तो कोई है नहीं। यदि है तो उस के भी साथ सम्बन्ध
कराने वाले अन्य कोई विशेषण-विशेष्यभाव सम्बन्ध की आवश्यकता आ पडेगी। उस के साथ भी सम्बन्ध करानेवाले अन्य सम्बन्ध की... इस तरह नये नये सम्बन्ध की जरूरत का अन्त न होने
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