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सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-२ हेतुभावान्नाभावरूपता तर्हि तमसोऽपि नक्तंचररूपप्रतिपत्तौ हेतुभावो विद्यत इति नाभावरूपता भवेत् । तदेवमालोकस्य वस्तुत्वे तमसोऽपि तदस्त्विति तेन हेतोर्व्यभिचारः।
भवतु वाऽऽलोकाभाव एव तमः, तथापि व्यभिचाराऽपरिहारः, तदभावस्याऽतैजसस्याऽपि तत्प्रकाशकत्वात् । अथ तमोऽभावेऽपि रूपदर्शनान्न तस्य तत्प्रकाशकत्वं तर्हि नक्तंचराणामालोकाभावेऽपि रूपदर्शनादालोकस्यापि 5 न तत्प्रकाशकत्वं भवेत् । अथाऽस्मदादीनां किमित्यालोकाभावे रूपदर्शनं न भवति ? भवत्येव, कथमन्य
थान्धकारसाक्षात्करणम् ? 'घटरूपदर्शनं किं न ?' इति चेत् ? बहलतमोव्यवधानात् तीव्रालोकतिरोहिताल्परूपवत्। प्रदीपोपादानं तु तस्य व्यवच्छेदार्थम् । अत एवान्यत्रोक्तम्
'तमोनिरोधे वीक्षन्ते तमसाऽनावृत्तं(?तं) परम्। घटादिकम्...' ( ) इत्यादि। प्रदीपस्य च घटरूपव्यवधायकतमोऽपनेतृत्वे 'तैजसं चक्षू रूपादीनां मध्ये रूपस्यैव प्रकाशकत्वात् प्रदीपवत्' इति 10 ही उस का अवभास होता है। अथवा यह भी कह सकते हैं कि आलोक तमोज्ञानाभावरूप ही है, क्योंकि
सच्चे स्वप्नज्ञान में जहाँ एक और नेत्र निष्क्रिय हैं, दूसरी ओर तमसज्ञान का अभाव है (यानी काला काला कुछ भी नहीं दीखता) तब स्वप्न में प्रकाश दिखाई देता है - इस से सिद्ध होगा कि उस वक्त तमोज्ञान का अभावरूप ही प्रकाश है। यदि रूपदर्शन के प्रति प्रकाश की हेतुता होने से प्रकाश को
अभाव स्वरूप नहीं माना जा सकता - तो (सितारों के दर्शन में तमस की हेतुता अथवा) निशाचर 15 प्राणियों को रूपदर्शन के प्रति तमस की हेतुता सिद्ध होने से तमस भी अभावस्वरूप नहीं हो सकता।
निष्कर्ष, यदि प्रकाश वस्तु है तो तमस भी वस्तु ही है (न कि अभाव), अतः तैजसत्वशून्य तमस में रूपप्रकाशकत्व हेतु तैजसत्व का व्यभिचारी ठहरता है।
[ तमस् को आलोकाभावरूप मानने पर भी दोष तदवस्थ ] व्याख्याकार कहते हैं - एक बार मान लिया कि तमस् प्रकाशाभावरूप है। फिर भी चक्षु में 20 तैजसत्वसाधक हेतु (रूपप्रकाशकत्व) में व्यभिचार दोष अनिवार्य है। कारण, प्रकाशाभावात्मक तमस् में
तैजसत्व नहीं है फिर भी सीतारे आदि के रूप का प्रकाशकत्व तो है। यदि कहें कि – ‘दिन में (प्रकाशाभावरूप) तमस् न होने पर भी रूपदर्शन होता है अतः तमस में रूपप्रकाशकत्व मान्य नहीं हैं' - तो समान ढंग से ऐसा भी जान लो कि रात्री में प्रकाश न होने पर भी निशाचरों को रूपदर्शन
होता है फलतः प्रकाश में भी रूपप्रकाशकत्व मान्य नहीं होगा। यदि आप पूछेगे कि प्रकाश में रूपप्रकाशकत्व 25 नहीं मानते तो प्रकाश के विरह में हम लोगों को क्यों रूपदर्शन नहीं होता ? उत्तर :- होता ही है,
अन्यथा प्रकाश के विरह में तमस का प्रत्यक्ष कैसे होता है ? यदि ऐसा प्रश्न हो कि घट का रूप क्यों नहीं दीखता ? उत्तर :- अति गाढ तमोद्रव्य का व्यवधान होने से। अति तीव्र प्रकाश से भी फिकारूपवाला पदार्थ तिरोहित हो जाने पर कहाँ दीखता है ? फिर से आप पूछेगे कि प्रकाश रूपप्रकाशक
नहीं है तो रात्री में लोग क्यों प्रदीप प्रगटाते हैं ? उत्तर :- अन्तरायभूत तमोद्रव्य का विध्वंस करने 30 के लिये। इसी लिये तो अन्य ग्रन्थ में स्पष्ट कहा है – 'तमस् का निरोध (ध्वंस) हो जाने पर तमस
के आवरण से मुक्त घटादि पदार्थ को देखते हैं।' ( ) इतनी चर्चा का फलितार्थ यह हुआ कि प्रदीप या प्रकाश रूपप्रकाशक नहीं है किन्तु घट के रूप का आवरण करने वाले तमस् को दूर करने हेतु
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